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मराठी जैन साहित्य का इतिहास की दूसरी रचना है।' हिन्दी में कैलास छप्पय नामक छोटीसी रचना भी इन्होंने लिखी थी। इन्होंने अपना नाम अर्जुनसुत लिखा है।
यमासा
इन्होंने भी अपना नाम अर्जुनसुत इस रूप में लिखा है, किन्तु उपर्युक्त सोयरा के साथ इनका क्या सम्बन्ध था, यह स्पष्ट नहीं है । कारंजा के भट्टारक शान्तिसेन के ये शिष्य थे। वत्सगुल्म ( वासिम ) नगर में शक १६७३ (= सन् १७५१) में विविध वृत्तों के ३२६ पद्यों की आदित्यब्रतकथा इन्होंने लिखी थी। इस कथा पर रची गई कृतियों में यह सबसे अधिक अलंकृत और विस्तृत है। अर्जुनसुत रचित काष्ठासंघ के भट्टारक विजयकीर्ति की एक आरती उपलब्ध है, किन्तु यह सोयरा की रचना है या यमासा की, यह स्पष्ट नहीं है। यमासा की तीन आरतियाँ भी उपलब्ध हैं। पंचपरमेष्ठी आरती में ६, पार्वनाथ आरती में ६ और सुपार्श्वनाथ आरती में ७ पद्य हैं। इनमें कारंजा और कांचनपुर के मन्दिरों का उल्लेख है। हिन्दी में आदिनाथ-आरती, पार्श्वनाथ-आरती, पद्मावती-आरती तथा कुछ छप्पयों की रचना भी यमासा ने की थी। तानू पंडित
ये कारंजा के भट्टारक शान्तिसेन के शिष्य थे। अतः इनका समय सन् १७५१ से १७६८ के आसपास का है। इनकी पांच छोटी रचनाएँ उपलब्ध हैं। कचनेर के पार्श्वनाथ की स्तुति में ११ पद्य हैं। पद्मावती आरती में ५, क्षेत्रपाल आरती में ७, समवसरण आरती में ५ तथा पार्श्वनाथ आरती में ५ पद्य हैं। हिन्दी में गुरुस्तुति के कुछ पद्य भी इन्होंने लिखे थे।
१. यह हमारे हस्तलिखित संग्रह में है। २. प्रा० म०, पृष्ठ ८८।
३. पहली आरती जिनदास चवडे, वर्धा द्वारा सन् १९२६ में प्रकाशित भारती संग्रह में छपी है, शेष दो हमारे हस्तलिखित संग्रह में उपलब्ध हैं।
४ प्रा० म०, पृष्ठ ८८। प्रथम दो रचनाएँ हमारे हस्तलिखित संग्रह में हैं। अन्तिम रचना जिनदास चवडे, वर्धा द्वारा सन १९०४ में प्रकाशित आरती संग्रह में छपी है।
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