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________________ २२५ प्रारंभिक एवं मध्ययुगीन मराठी जैन साहित्य दशलक्षणधर्म सवैया तथा स्फुट २५ सवैया ये जिनसागर की अन्य रचनाएँ प्राप्त हैं। लक्ष्मीचन्द्र ये कृपासागर के शिष्य थे। इनकी दो रचनाएं प्राप्त हैं। मेघमालाबत कथा शक १६५० (सन १७२८ ) में माननगर में पूर्ण हुई थी। इसमें ६९ ओवी हैं। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष के प्रारम्भिक पांच दिनों में मेघमालाव्रत किया जाता था, इसी का माहात्म्य इस कथा में वर्णित है। इनकी दूसरी रचना जिनरात्रिव्रतकथा में १५८ ओवी हैं। यह भी माननगर में ही लिखी गई थी। माघ कृष्ण चतुर्दशी के जिनरात्रिव्रत का माहात्म्य इसमें वर्णित है। कवि का कथन है कि भगवान् महावीर ने पूर्वजन्म में इस व्रत का पालन किया था। सया इनकी दो रचनाएं उपलब्ध हैं ।२ चोवीस तीर्थकरस्तुति में २६ पद्य हैं। इसमें मुनिसुव्रत तीर्थकर सम्बन्धी श्लोक में प्रतिष्ठान ( पैठन ) के मुनिसुव्रतमन्दिर का उल्लेख है। दूसरी रचना नेमिनाथभवान्तर में विविध वृत्तों के १२८ पद्य हैं। शक १६६० (सन् १७३८) में रचित इस काव्य में नेमिनाथ की कथा पूर्वजन्मों के साथ वर्णित है । सोयरा . ये बघेरवाल जाति के चवरिया गोत्र के अर्जुन के पुत्र थे। कारंजा के भट्टारक समन्तभद्र इनके गुरु थे। इन्होंने संवत् १८०२ ( सन् १७४६ ) में देउलगांव में कर्माष्टमीव्रतकथा की रचना की थी। भाषाढ़, कार्तिक व फाल्गुन की शुक्ल अष्टमी. को कर्माष्टमीवत किया जाता था। इसका माहात्म्य दिखानेवाली इस कथा में ११७ ओवी हैं। किसी कन्नड रचना का आधार लेकर कवि ने यह कथा लिखी थी। ८ पद्यों की सुपार्श्वनाथ-आरती सोयरा . १. प्रा० म०, पृष्ठ ८६ । २. इनका परिचय हमने साप्ताहिक जैन बोधक, सोलापुर, के दि० २९. ९.६९ के अंक में दिया है। ३. प्रा० म०, पृष्ठ ८७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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