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मराठी जैन साहित्य का इतिहास महापुराण की कथा के अनुसार भगवान् ऋषभदेव के दस पूर्वजन्मों का वर्णन है। सरस्वती आरती (५ पद्य), रत्नत्रय आरती (८ पद्य) तथा नन्दीश्वर आरती ( अपूर्ण रूप में प्राप्त ) ये छत्रसेन की अन्य उपलब्ध मराठी रचनाएँ हैं।' -संस्कृत में पंचमेरुपूजा, पार्श्वनाथपूजा, अनन्तनाथस्तोत्र व पद्मावतीस्तोत्र तथा हिन्दी में द्रौपदीहरण, समवसरण षट्पदी व झूलना ये छत्रसेन की अन्य उपलब्ध रचनाएं हैं। इनके शिष्य हीरा, बिहारी और अर्जुनसुत की कुछ हिन्दी रचनाएँ भी उपलब्ध हैं। सटवा
ये लातूर के भट्टारक महीचन्द्र के शिष्य भ० महीभूषण के शिष्य थे। इससे इनका समय सन् १७१८ के आसपास सिद्ध होता है। इनकी तीन रचनाएं मराठी में उपलब्ध हैं ।२ शिवानेमिसंवाद २० कडवकों का गीत है, जिसमें नेमिनाथ के वैराग्य-प्रसंग का वर्णन है। कंसाचे पद ८ कडवकों का गीत है. कंस द्वारा श्रीकृष्ण की हत्या के लिए किये गये विफल प्रयत्नों का इसमें वर्णन है । जिनस्तुति में १४ ओवी हैं तथा अरहंतदेव का गुण वर्णन है। नेमिनाथ के वैराग्य विषयक इनका एक हिन्दी गीत भी उपलब्ध है। नीबा __इनके दो गीत शक १६४८ के हस्तलिखित में उपलब्ध हुए हैं', अतः इनका समय सन् १७२६ से पहले का सिद्ध होता है, कितने पहले-यह अभी अनिश्चित है । एक गीत में शिरपुर के अन्तरिक्ष पाश्वनाथ की स्तुति ५ कडवकों में है । इसे अहिराणी गीत कहा गया है । धूलिया-जलगांव जिलों में प्रचलित अहीर बोली का प्रभाव इसकी भाषा पर है। दूसरे नेमीश्वर गीत में ३ कडवक हैं । इसमें नेमिनाथ के वैराग्यप्रसंग का वर्णन है। यादवसुत
ये गुणसागर के शिष्य थे। इससे इनका समय सन् १७१८ के आसपास अनुमानित है। इनकी एकमात्र उपलब्ध रचना अष्टकर्मप्रकृति है, जिसमें विविध वृत्तों के २२२ पद्य हैं । ज्ञानावरण आदि आठ कर्मों का परंपरागत वर्णन इसमें
१. प्रा० म०; पृष्ठ ७९, रत्नत्रय आरती हमारे संग्रह में उपलब्ध है। २. प्रा०म०, पृष्ठ ८०, तीसरी रचना हमारे हस्तलिखित संग्रह में है। ३. प्रा० म०, पृष्ठ १०९ ।
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