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________________ प्रारंभिक एवं मध्ययुगीन मराठी जैन साहित्य २२१ रामकोति ये भी महीचन्द्र के शिष्य थे । इनकी एकमात्र उपलब्ध रचना पद्मावती आरती में १४ कडवक हैं। देवी पद्मावती की पूजाविधि इस भक्तिपूर्ण रचना में वर्णित है।' देवेन्द्रकीति ये भी महीचन्द्र के शिष्य थे। इनकी विस्तृत रचना कालिकापुराण कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। पद्मपुराण के जिनदासकृत गुजराती रूपान्तर का उल्लेख आधार के रूप में कवि ने किया है। किन्तु इसकी कथावस्तु से यह उल्लेख प्रमाणित नहीं होता। ४८ अध्याय और लगभग ७००० ओवी में रचित इस ग्रन्थ में कालिका ( पद्मावती) की महिमा बतानेवाली कथाएँ हैं। साथ ही सम्यक्त्वकौमुदी, धर्मपरीक्षा और अनन्तव्रत की कथाएं भी इसमें शामिल कर ली गई हैं। इसका विशेष महत्त्वपूर्ण भाग वह है जिसमें महाराष्ट्र के जैन समाज की बोगार जाति का लिंगायतों से विरोध, बोगारों में अन्तर्गत विरोध, मुसलमान राज्यकर्ताओं के अत्याचार आदि की कथाएँ विस्तार से वर्णित हैं। पुण्यसागर (द्वितीय) ये औरंगाबाद के भट्टारक भुवनकीर्ति के शिष्य आनंदसागर के शिष्य थे।" इससे इनका कार्यकाल सन् १७०० के आसपास सिद्ध होता है। गुण कीति के अपूर्ण पद्मपुराण में चिन्तामणि ने सात अध्याय जोड़े थे, पुण्यसागर ने आठ अध्याय और जोड़कर यह ग्रन्थ पूरा किया। इन अध्यायों में सीता-निर्वासन, लव-कुश का जन्म, सीता का अग्निदिव्य, राम का वैराग्य, तपस्या तथा निर्वाण आदि कथाभाग वणित है । छत्रसेन ये सेनगण की कारंजा शाखा में समन्तभद्र के बाद भट्टारक हुए थे। कागल ( कोल्हापुर के समीप ) नगर में शक १६२५ ( सन् १७०३ ) में इन्होंने आदीश्वर-भवान्तर नामक गीत की रचना की। इसमें ६७ कडवकों में १. प्रा० म०, पृष्ठ ७३ । २. प्रा० म०, पृष्ठ ७६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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