________________
आरंभिक एवं मध्ययुगीन मराठी जैन साहित्य
२१३
१
सुदर्शनचरित्र का यह विस्तृत संस्करण कहा जा सकता है । यह विस्तार मुख्यतः श्रावकधर्म के विस्तृत विवरण के कारण हुआ है । वीरदास की अन्य रचनाओं का परिचय इस प्रकार है- नवकार मंत्रप्रकृति में २२ ओत्री हैं तथा नमस्कार मंत्र का महत्व बतलाया है; " बहुतरी में नाम के अनुसार ७२ मोवी हैं तथा प्रत्येक ओवी का प्रारंभ का अक्षर वर्णमाला के क्रम से रखा गया है, इसमें विविध धार्मिक विचारों का संग्रह है; र नेमिनाथ वन्हाड ४० पद्यों का गीत है, जिसमें नेमिनाथ के अपूर्व विवाह समारोह का वर्णन है । 3 दामा पंडित
२
ये दयासागर के शिष्य थे । इनका समय सत्रहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध है । इनकी दो रचनाएँ उपलब्ध हैं। जम्बूस्वामीचरित्र में १६ अध्याय और १९१५ ओवी हैं । भगवान् महावीर के बाद की आचार्य परम्परा के तीसरे आचार्य तथा अन्तिम केवलज्ञानी के रूप में प्रसिद्ध जम्बूस्वामी की कथा इसमें वर्णित है। तरुण अवस्था नें उनका वैराग्य, आठ पत्नियों को संसार की असारता समझाने के लिए कही गई कथाएं, दीक्षा और तपस्या का कवि ने सरस वर्णन किया है। इस ग्रन्थ का एक परिवर्धित संस्करण रत्नसा ने पचास वर्ष बाद तैयार किया था। दामा पण्डित की दूसरी रचना दानशीलतपभावना में ४६८ ओवी हैं। इसमें भगवान् महावीर के समवसरण में दान, शील, तप और भाव अपनी-अपनी श्रेष्ठता का प्रतिपादन करते हैं । दामा पण्डित ने इसकी २८५ ओवी तक रचना की थी, शेष भाग भानुकीर्ति ने पूर्ण किया ।
१. प्रा० म० पृष्ठ ४४-४६ ।
२. सन्मति, नवम्बर १९५९ में प्रकाशित, सं० वि० जोहरापुरकर | ३. सन्मति, जून १९६० में प्रकाशित, सं० वि० जोहरापुरकर |
४. आयु में दयासागर दामा पण्डित से काफी छोटे होंगे क्योंकि दामा- पण्डित की दानशीलतपभावना पूर्ण करने वाले भानुकीर्ति के बाद उन्हें भट्टारक पद मिला था जैसा कि आगे दिये हुए भानुकीर्ति और दयासागर के परिचय से स्पष्ट होगा ।
५. प्रतिष्ठान मासिक, औरंगाबाद, मई १९६० में इसका परिचय हमने दिया था ।
६. प्रा० म०, पृष्ठ ५० ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org