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मराठी जैन साहित्य का इतिहासा
१५८० के आसपास निश्चित होता है । इनकी एकमात्र उपलब्ध रचना यशोधर पुराण में आठ अध्याय और १३१६ ओवी हैं ।" मोरंबपुर के मालातीर्थ चैत्यालय में कवि ने यह ग्रन्थ लिखा । इसकी रचना सकलकीति के संस्कृत ग्रन्थ के आधार पर हुई । मराठी में यशोधर की कथा पर यह तीसरी कृति है जो काव्यदृष्टि से पूर्वरचित दो ग्रन्थों की अपेक्षा सरस है ।
अभयकीति
ये अजितकीर्ति के शिष्य थे । इनकी आदित्यव्रतकथा शक १५३५ में तथा अनंतव्रतकथा शक १५३८ ( सन् १६१६ ) में पूर्ण हुईं थी । २ अनंतव्रतकथा में २५५ ओवी हैं । भाद्रपद शुक्ल एकादशी से त्रयोदशी तक एकाशन और चतुर्दशी को उपवास कर प्रथम चौदह तीर्थंकरों की पूजा अनंतव्रत में की जाती है । इसके पालन से सोम ब्राह्मण की दरिद्रता नष्ट हुई तथा अगले जन्म में उसे राजवैभव प्राप्त हुआ ।
वीरदास ( पास कीर्ति)
इनका जन्म सोहितवाल जाति में हुआ था । कारंजा के भट्टारक कुमुदचन्द्र तथा उनके उत्तराधिकारी भ० धर्मचन्द्र का इन्होंने गुरूरूप में उल्लेख किय है । इनके हाथ की लिखी गुणकीर्तिकृत अनुप्रेक्षा की प्रति उपलब्ध है तथा इनके द्वारा अध्ययन में प्रयुक्त विश्वतत्त्वप्रकाश तथा पंचस्तवनावचूरिये दो हस्तलिखित ग्रन्थ भी प्राप्त हुए हैं । इनका पहला नाम वीरदास तथा मुनिदीक्षा के बाद का नाम पासकीर्ति था । धर्मचन्द्र ने इन्हें औरंगाबाद में भट्टारक पद पर प्रतिष्टित किया था । इनके द्वारा सन् १६४७ में प्रतिष्टित जिनमूर्ति बालापुर के जिनमंदिर में है । मराठी में इनकी चार रचनाएँ प्राप्त हैं । इनमें सबसे बड़ी कृति सुदर्शनचरित्र है । इसमें २५ अध्याय और १६५० ओवी हैं । इसकी रचना शक १५४९ ( सन् १६२७ ) में पूर्ण हुई थी । कामराज के
१. बाळाप्पा आलासे, कुरुन्दवाड द्वारा प्रकाशित ( वर्ष मालूम नहीं हो सका ) ।
२. आदित्यव्रतकथा की सूचना हमें स्व० पं० नाथूरामजी प्रेमी के पत्र से मिली थी । अनंतव्रतकथा हमने सन्मति ( मई १९५८ ) में प्रकाशित की है ।
३. प्रा० म०, पृष्ठ ४४-४६ ।
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