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मराठी जैन साहित्य का इतिहास
क्षमागीत में क्षमा का महत्त्व ६ पद्यों में वर्णित है तथा विंचूगीत के ५ पद्यों में विषयवासनारूपी बिच्छू का प्रभाव वैराग्यरूपी झाडू से दूर करने का उपदेश है।' गुणदास ने अपना नाम ब्रह्मगुणदास या गुणब्रह्म इन दो रूपों में लिखा
गुणकीति
इनकी रचनाओं में भी सकलकीति, भुवनकीर्ति और ब्रह्मजिनदास का गुरुरूप में उल्लेख है। इससे अनुमान होता है कि गुणदास का ही मुनिदीक्षा के बाद का नाम गुणकीर्ति होगा। इनकी सबसे बड़ी रचना पद्मपुराण है।' गुणकीर्ति ने इसके २८ अध्याय लिखे थे। दो सौ वर्ष बाद चिन्तामणि नामक कवि ने इसमें सात अध्याय जोड़े तथा उनके कुछ ही वर्ष बाद पुण्यसागर ने आठ अध्याय और जोड़कर इसे पूर्ण किया। पूरे ग्रन्थ में १५००० ओवी हैं । जैन परम्परा में प्रचलित रामायण की कथा का इसमें विस्तार से वर्णन है। इसमें भ० आदिनाथ के वैराग्य-प्रसंग के वर्णन में ३४५ ओवी विस्तार वाला द्वादशानुप्रेक्षा (संसार की अनित्यता आदि बारह भावनाओं का चिन्तन) यह प्रकरण है। जिसकी कई स्वतन्त्र प्रतियां भी मिलती हैं। गुणकीर्ति की दूसरी महत्त्वपूर्ण रचना धर्मामृत' गद्य में है। श्रावकों के आचार का उपदेश इसका प्रमुख विषय है । साथ ही जैन कथा, गणित, तीर्थ, तत्त्ववर्णन आदि का भी संक्षिप्त वर्णन इसमें है। त्याज्य विषयों के रूप में जैनेतर देवता, साधु, साहित्य आदि के ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण उल्लेख इसमें मिलते हैं। ग्रंथ की भाषा सरल और प्रभावपूर्ण है । गुणकीति के छः गीत भी उपलब्ध हैं जिनका परिचय इस प्रकार है' नेमिनाथ पालना १९ कडवकों का है, इसमें बालक
१. प्रा० म०, पृष्ठ १६-१७।
२. श्री जयचन्द्र श्रावणे, वर्धा द्वारा १९०२ से १९०८ तक पांच भागों में प्रकाशित ।
३. सन्मति, अगस्त १९५९ में प्रकाशित, सं०वि० जोहरापुरकर; मुद्रित पद्मपुराण में यह प्रकरण नहीं पाया जाता ।
४. प्र. जीवराज ग्रन्थमाला, शोलापुर, १९६०, सं०वि० जोहरापुरकर; इसका एक संस्करण धर्मविलासपुराण नाम से अदप्पा बापू पसोबा ने बन्धु पद्मण्णा की स्मृति में कुरुन्दवाड से सन् १९०४ में प्रकाशित किया था, तब इसके कर्ता का परिचय नहीं मिल सका था।
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