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प्रारंभिक एवं मध्ययुगीन मराठी जैन
साहित्यकार एवं उनकी रचनाएँ
गुणदास
अब तक ज्ञात मराठी जैन लेखकों में गुणदास सर्वप्रथम हैं । ये ईडर के भट्टारक सकल कीति के शिष्य ब्रह्मजिनदास के शिष्य थे। जिनदास के रामायणरास ( संवत् १५०८) और हरिवंशरास ( संवत् १५२० ) की प्रशस्तियों में गुणदास का उल्लेख है। इससे इनके साहित्यिक जीवन का आरम्भ सन् १४५० के आसपास का स्पष्ट होता है। मराठी में इनकी पांच रचनाएं उपलब्ध हैं। इनमें सबसे बड़ी रचना श्रेणिक चरित्र में चार अध्याय और ३००० ओवी हैं। भगवान् महावीर के समकालीन मगध ( दक्षिण बिहार ) के राजा श्रेणिक बिम्बसार की मनोरंजक कथा इसमें वणित है। श्रेणिक की जीवन-कथा बहुविध प्रसंगों से परिपूर्ण है। बचपन में सोतेले भाइयों की स्पर्धा, उसके फलस्वरूप अज्ञातवास, नन्दा से विवाह, पुत्र अभय का जन्म, पुनः राज्यप्राप्ति, विदेह की राजकन्या चेलना से विवाह तथा उसके आग्रह से जैनधर्म का स्वीकार, पुत्र कूणिक का विरोध और अन्त में कारागृह में दुःखद मृत्यु-इन सब प्रसंगों का गुणदास ने सरल और सरस भाषा में वर्णन किया है। इनकी अन्य कृतियों का परिचय इस प्रकार है-रामचन्द्र हलदुलि-यह ३० पद्यों का गीत राम विवाह के विषय में है। गान्हाणे-यह ६ पद्यों का गीत है जिसमें शिकायत के रूप में जिनदेव की प्रार्थना है।
१. भट्टारक सम्प्रदाय (जीवराज ग्रन्थमाला, शोलापुर १९५८ ) पृष्ठ १३९ ।
२. प्र. जीवराज ग्रन्थमाला, शोलापुर, १९६४, सं० सुभाषचन्द्र अक्कोळे।
३. ओवी मराठी का सर्वाधिक प्रचलित छन्द है। इसमें अनियमित अक्षरसंख्या के चार चरण होते हैं तथा सामान्यतः प्रथम तीन चरणों में अन्त्य यमक का प्रयोग होता है ।
४. सन्मति, नवम्बर १९५९ में प्रकाशित, सं० वि० जोहरापुरकर । ५. सन्मति, जून १९६० में प्रकाशित, सं. वि. जोहरापुरकर ।
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