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________________ आरम्भकाल नृपतुंग ( ८१४-८७७ ई०) ये राष्ट्रकूट वंश के राजा थे। मान्य खेट इनकी राजधानी थी। अमोघवर्ष और अतिशयधवल नुपतुंग की उपाधियां थीं । संस्कृत के 'आदिपुराण' के रचयिता जिनसेन इनके पूज्य गुरु थे। 'प्रश्नोत्तररत्नमालिका'' नामक संस्कृत ग्रन्थ में इन्होंने लिखा है कि विरक्त हो, मैंने स्वयं राज्य का परित्याग किया है। . कविराजमार्ग इनका लक्षणग्रन्थ है। इसमें दोषादोबानुवर्णतनिर्णय, शब्दालंकार तथा अर्यालंकार नाम के तीन परिच्छेद हैं । प्रत्येक परिच्छेद के अंत में 'नृपतुंगदेवानुमतं' अंकित है । आश्चर्य है कि इसमें 'कृतम्' न होकर 'अनुमतम्' है। परिच्छेद के अंतिम पद्य में 'श्री विजयप्रभूतम्' लिखा मिलता है । साथ ही साथ ग्रन्थ के अंत में 'नृपतुग के सभासद द्वारा कथितकाव्यम्' कहा है। इन्हीं कारणों से विद्वानों ने अनुमान लगाया है कि श्रीविजय नृपतुग के सभासद थे और इन्होंने ही नृपतुंग के नाम से यह ग्रन्थ लिखा होगा। कुछ लोगों की यह भी राय है कि कविराजमार्ग के रचयिता श्रीविजय नहीं, किन्तु कवीश्वर हैं। नागवर्म और भट्टारक अकलंक इन दोनों की मान्यता है कि नृपतुग ही कविराजमार्ग के प्रणेता हैं । अगर ग्रंथ श्रीविजय या कवीश्वर के द्वारा निर्मित होता तो स्पष्ट रूप से अपने ही नाम 'परम श्रीविजय' या 'कवीश्वर' देने में कोई रोक तो थी नहीं । संस्कृत में नृपतुंग-प्रणीत एक ग्रंथ है भी। कविराजमार्ग मौलिक ग्रंथ नहीं है। दण्डो के ग्रंथ का कन्नड रूपान्तर है। दण्डी की मान्यताओं से सहमत होने के नाते ग्रंथ में 'अनुमतम्' लिखा होगा। नहीं तो वे 'कृतम्' ही का प्रयोग कर सकते थे। इन्हीं कारणों से कविराजमार्ग के रचयिता नृपतुंग ही ठहरते हैं, श्रीविजय या कवीश्वर नहीं। ___ इस ग्रंथ में अलंकारशास्त्र का निरूपण तो हुआ ही है, साथ ही साथ उस युग की कन्नड के सम्बन्ध में जो तथ्य यहाँ उपलब्ध होता है, वह साहित्य के इतिहासकार की दृष्टि से कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। इसमें कन्नड भाषा की भौगोलिक सीमा के बारे में उल्लेख है 'कन्नड प्रदेश कावेरी से , १. विशेष जिज्ञासु 'वीरवाणी' वर्ष २२, अंक १३-१४. ( जयपुर ) में प्रकाशित मेरा लेख देखें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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