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________________ प्रास्ताविक २०५ तथा विभिन्न तीर्थक्षेत्रों का वर्णन १० गीतों में है। पूजा-पाठों की संख्या ४, स्तुतियों की संख्या १६ तथा भारतियों की संख्या ४० है। गम्भीर विषयों के १० ग्रन्थ हैं जिनमें तत्त्वविचारविषयक ५ तथा श्रावकाचारविषयक ५ ग्रन्थ हैं। यहां वर्णित कवियों में लगभग आधे भट्टारक या उनके शिष्य-साधु या ब्रह्मचारी थे, शेष गृहस्थ थे । प्रायः सब कवियों ने अपने गुरु का आदरसहित उल्लेख किया है। इससे जहां उनकी गुरुभक्ति प्रकट होती है, वहीं उनके समय निर्णय में भी सहायता मिलती है । धर्माचार्यों के इन समकालीन प्रशंसात्मक वर्णनों से महाराष्ट्र के धार्मिक इतिहास की जानकारी मिलने में बहुत सहायता हुई है। गुणकीर्ति, मेघराज आदि १५ कवियों ने मराठी के अतिरिक्त गुजराती, हिन्दी और संस्कृत भाषाओं में भी साहित्य-रचना की है। कई लेखकों ने अपने आधारभूत ग्रन्थों के स्पष्ट उल्लेख किये हैं। लगभग २० रचनाओं में गुजराती के, १० रचनाओं में संस्कृत के तथा ५ में कन्नड़ के ग्रंथों का आधार के रूप में उपयोग हुआ है। गीतों की रचना प्रायः स्वतन्त्र रूप से हुई है और मराठी के सहज-सुन्दर रूप की अभिव्यक्ति इन्हीं में उत्तम रूप से हुई है। साहित्यिक दृष्टि से पद्मपुराण, हरिवंशपुराण तथा श्रेणिक, जम्ब.. स्वामी, सुदर्शन, यशोधर आदि के चरित-काव्य पठनीय हैं । विशेषतः गुणदास और जनार्दन के श्रेणिकचरित्र काव्य गुणों से परिपूर्ण हैं । भक्तिभाव का प्रकटीकरण पूजा, आरती और स्तुतियों में विशेष रूप से हुआ है। ये रचनाएँ गायन की दृष्टि से विशेष उपयुक्त हैं । लय और ताल के अनुरूप इनकी शब्द रचना योग्य वाद्यों की संगति में अनूठे आनन्द की सृष्टि करती है। आधुनिक मराठी जैन साहित्य सन् १८५० के बाद अंग्रेजी शिक्षा पद्धति और मुद्रण-व्यवसाय तथा डाक व्यवस्था के प्रसार से सभी भारतीय साहित्यिक कार्यों में व्यापक परिवर्तन हुआ। मराठी भाषी जैन समाज में इस नवयुग का सूत्रपात सेठ हिराचन्द नेमचन्द दोशी द्वारा सन् १८८४ में स्थापित मासिक जैनबोधक से हुआ। तब से अब तक लगभग चार सौ पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं । विषयों की विविधता, लेखकों तथा पाठकों में विभिन्न वर्गों के व्यक्तियों का समावेश, गद्य की प्रधानता तथा भाषा की सरलता ये आधुनिक साहित्य में पाई जाने वाली प्रमुख विशेषताएं हैं । प्रकाशित पुस्तकों में लगभग आधी प्राचीन संस्कृत-प्राकृत ग्रंथों के अनुवादों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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