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गद्यग्रंथ
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- महाराज के मंत्री और सेनापति थे पोदपण्ण गांगेय, जो स्वयं जैनधर्मावलम्बी थे । इनका समय ई० बारहवीं शताब्दी था । आचार्य अडियाकुँ नल्लार के मत या सम्प्रदाय के बारे में अब भी किसी निर्णय पर 'पहुँचना कठिन है । अत: उनको जैन धर्म प्रेमी या जैनदर्शन के ज्ञाता कहना मात्र पर्याप्त होगा ।
नन्नूल
नन्नूल तमिल का बहुत उपयोगी तथा उपादेय व्याकरण ग्रन्थ है । कुलोतुंग-तृतीय के समयवर्ती जीयगंगम् नामक गंगनरेश की अभ्यर्थना पर जनकापुर निवासी' आचार्य भवणंदी ( भवणनंदी ) ने 'नन्नूल्' ( उत्तम और सुबोध ग्रन्थ ) की रचना की थी । उपलब्ध ' नन्नूल्' ग्रन्थ में 'एळ त्तिलक्कणम्' ( वर्ण लक्षण ) और 'शोल्लिलक्कणम्' ( शब्दलक्षण ) - ये दो भाग ही हैं । किन्तु ग्रन्थ के 'शिरप्पु पाथिरम् ' ( प्रारंभिक परिचयात्मक पद्य ) से यह अनुमान लगाया जाता है कि इसमें वर्ण, शब्द, अर्थ, छंद और अलंकार - इन पाँच अंगों का विशद विवेचन हुआ होगा । समकालीन और परवर्ती विद्वानों ने इस उपादेय ग्रन्थ की भूरि-भूरि प्रशंसा की है । आगत्तियम् ( अगस्त्य व्याकरण ) और अविनयम् ( आचार्य अविनयकृत लक्षणग्रन्य ) के साथ और विशेषकर तोलकाप्पियम् का अनुसरण करके यह ग्रन्थ रचा गया है । इस ग्रंथ में विषय-विवेचन बहुत ही सुंदर तथा कोमल शैली में हुआ हैं । जैनपंडित मलिनायर ने इस ग्रन्थ की व्याख्या लिखी है । शिवज्ञान मुनि ने 'वृत्ति उरै' नामक नयी व्याख्या उपस्थित की ।
नम्बि अहप्पोरुळ
तमिल में व्याकरण के पाँचों अंगों (वर्ण, शब्द, अर्थ, छन्द और अलंकार ) पर अलग-अलग रचनाएं लिखी गयीं। इसी प्रकार 'पोळ् आरायच्चि' (भाव या अर्थका अनुसन्धान) को भी 'अट्टप्पोरुळ' (अन्तर पक्ष ) और 'पुरप्पोरुळ' ( बाह्य पक्ष) के रूप में विभाजित किया गया । 'पुरप्पोरुळ' में जीवन के बाह्य पक्ष ( आचार-विचार, व्यवहार आदि) का अनुशीलन किया गया जिसका एकमात्र प्रामाणिक ग्रंथ है ' पुरप्पोरुळ वेण् पा-माले' | उसका मूलस्रोत तोलकाप्पियम् था, अतः उसके विषयों का अनुकरण तथा विश्लेषण उक्त ग्रंथ में बहुत सुन्दर ढंग से हुआ है, वह भी उस 'वेण्-पा माले' ग्रंथ को व्याख्या द्वारा ही । ! अहप्पोरुळ' (जीवन का आन्तर पक्ष ) का विश्लेषण इरैयनार् कृत ग्रन्थ
१. जनकापुरम् को कुछ अनुसंधानकर्ताओं ने 'जननाथ पुरम्' साबित किया है, जो कोयम्पत्तूर जिले में है ।
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