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__ तमिल जैन साहित्य का इतिहास 'तोलकाप्पियम्' से भिन्न या विरुद्ध बातें भी उनके ग्रन्थ में मिलती हैं। किन्तु, इस परम्परा में आचार्य इळम्पूरणर् ने सर्वप्रथम 'तोलकाप्पियम्' के अस्तगामी विधि-नियमों का समर्थन एवं प्रसार अपनी सुप्रसिद्ध व्याख्या द्वारा किया । इसी कारण इनको 'उरैयाशिरियर' (व्याख्या के आचार्य) की गौरवपूर्ण उपाधि प्राप्त हुई। प्रारम्भिक प्रशस्ति में निर्दिष्ट है कि ये मणक्कुडि के निवासी थे और इनके पिता का नाम इळम्पूति था। मयिलेनाथर ने इनको संन्यासी लिखा है । ये जैनधर्म प्रेमी थे। इन्हीं के मार्गदर्शन में 'तोलकाप्पियम्' का अनुसंधानपूर्वक विवेचन हुआ। आचार्य इळम्पूरणर् का समय ग्यारहवीं शती माना जा सकता है।
नेमिनाथर् तमिल में 'शोलअधिकारम्' ( शब्दाधिकरण ) ही इलक्कणम् (व्याकरण) के नाम से प्रचलित होने लगा। ई० बारहवीं शती में 'तोलकाप्पियम्' के 'शोल्-अधिकारम्' को गुणवीर पण्डित ने 'वेण-पा' छंद में संगृहीत किया और अपने उस लघु लक्षणग्रन्थ का नाम रखा 'नेमिनाथम्'। इसी कारण, ग्रन्थकर्ता का नाम ही नेमिनाथर् पड़ गया और इन्हीं को 'पेराशिरियर' (महाचार्य) कहा । 'तमिल नावलर चरित' ( तमिल कवियों का चरित ) में इसकी चर्चा है और उसमें बताया गया है कि आचार्य नेमिनाथर कविवर ओट्टक्कूत्तर के समकालीन थे। तमिल छंदों और पद्यों के विषय में नेमिनाथर् ने 'वच्चणन्दि माल' नामक ग्रन्थ लिखा है। उसकी टिप्पणी से पता चलता है कि त्रिभुवन देव के समय उस ग्रन्थ का प्रणयन हुआ। बारहवीं शती के उत्तर भाग में शासन करनेवाले चोल राजा कुलोत्तुंग ( तृतीय ) ही त्रिभुवनदेव हैं । गुणवीर पण्डित ( नेमिनाथ ) के आचार्य का नाम था वच्चणंदी ( वज्रनंदी) और नेमिनाथर् ने ग्रन्थारम्भ में अर्हत् भगवान् की वंदना की है। अतः आचार्य नेमिनाथर को जैन मानने में कोई आपत्ति नहीं है। 'पच्चणंदिमाल' का मूलग्रन्थ 'इन्दिरकालीयम्' लिखा गया है। सम्भव है कि यह भी किसी जैन पंडित की रचना हो।
__ अडियाक्कु नल्लार तमिल महाकाव्य "शिलप्पधिकारम्' के व्याख्याकार होने का गौरव पंडितवर् अडियाओं नल्लार को प्राप्त हुआ है। इनकी व्याख्या के पूर्व 'अरूम्पद उरै' ( विशिष्ट या कठिन शब्दों की व्याख्या ) नामक एक टिप्पण प्रचलित था, जो उपलब्ध है । ककुवेळ विजयमंगल के निकटवर्ती 'निम्पै' नामक स्थान में इनका जन्म हुआ। पोप्पण्ण गांगेय इनके अभिभावक थे, जो राजा या सामन्त थे। रामानुजाचार्य के प्रभाव से वैष्णव बने भोजळ विष्णुवर्धन
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