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________________ तमिल जैन साहित्य का इतिहास तमिल को समृद्ध बनाने का श्रेय मुख्यतया जैन पंडितों को है। तमिल व्याकरण में प्रथमतः लिपि, शब्द और अर्थ तीनों का विवेचन रहता था। 'इरैयनार अहप्पोरुळ' की व्याख्या के समय में, 'याप्पु' ( छंद ) अलग होकर लक्षण की एक शाखा बन गया। संस्कृत के छन्दशास्त्र की तरह तमिल छन्द भी कई बातों में अपती विशिष्टता रखते हैं। प्राचीन काल से ही लक्षण ग्रन्थ दो शाखाओं में विभक्त थे-शोळ अधिकारम् (शम्दाधिकार) और पोरुळ् अधिकारम् (अर्थाधिकरण )। इनमें पोरुळियल इलक्कणम् ( अर्थाधिकरण-लक्षण ) के अहप्पोरुळ् ( आन्तर पक्ष ) और पुरप् पोळ् ( बाह्य पक्ष ) ये दो भाग हैं । पोळ् अधिकारम् की गवेषणा और प्रसार बहुत कम हुआ और इस बात की पुष्टि 'इरैयनार अहप्पो. रुळ्' की व्याख्या से होती है। 'पुरप्पोरुळ' (बाह्य पक्ष ) की विवेचना के लिए 'पुरप्पोकळ वेण्पा माल' को अवतरण हुआ। इसका मूल स्रोत. 'पन्निरू पडलम्' नामक लघु पद्य संग्रह है जिसमें अगस्त्य के बारह शिष्यों के एक-एक ‘पद्य संगृहीत हैं। पाट्टियल _ 'पाट्टियल्' छन्दरीति को कहते हैं जिसमें विविध पद्यों का स्वरूप लक्षण रहता है। पूर्वोक्त ‘पन्निर पडलम्' इस 'पाट्टियल' (छन्दरीति ) की विवेचनप्रधान रचना है। पद्य के ग्यारह समंजस लक्षणों के विवेचन के बाद बारहवें अंग वर्ण का विवेचन उसमें किया गया है। इस ग्रन्थ में तेरह कवियों (पंडितों) के पद्य उद्धृत किये गये हैं; आचार्य अगस्त्य को छोड़ अन्य बारह पण्डितों के पद्य इसमें समाहित हैं। उनके नाम हैं: पोय्हैयार, पाणद्, इन्दिर काळियार, अविनयनार, कल्लाडर, कपिलर, घेन्दम् भूतनार, कोवर किळार, माभूतनार, शीत्तलैयार, पलकायनार और पेरुं कुण्ड्र र किळार । इस ग्रन्थ के अतिरिक्त 'मामूलर पाट्टियल्' (मामूलर रचित पाट्टियल ) और 'पाट्रियल' मरपुडैयार' नामक दो ग्रन्थों के नाम प्राचीन लक्षणग्रन्थों की व्याख्याओं में मिलते हैं। इनके अतिरिक्त केवल छन्दविवेचन के लिए रचित कई ग्रन्थों के नाम 'याप्परुंगलवृत्ति' ( एक अर्वाचीन तमिल छन्द ग्रन्थ ) में मिलते हैं, जैसे-संघयाप्पु, शिरु काक्कैप् पाडिनियम्, पेरुम् काक्कैप् पाडिनियम्, मायेच्चुरर् याप्पु, अविनयर याप्पु, नक्कीरर् नालडि नार्पदु, वाय् पियम्, इत्यादि । अणि ( अलंकार ) ग्रन्थ : इरैयनार अहप्पोळ्' ग्रन्थ की व्याख्या के प्रकाश में आने के उपरान्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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