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काप्पियम्-२
१८५ कल्याणसुन्दर मुदलियार-जैसे विद्वानों ने श्रमणधर्म की सार्वजनीनता के बारे में काफी लिखा है।
___डॉ. उ० वे० स्वामिनाथन् अय्यर ने लिखा है कि एक जैनधर्मी सज्जन की श्रीमती जी अपने तत्त्वज्ञान में परम विदुषी थीं और पारिभाषिक तथा सांकेतिक शब्दों और वाक्यों का भी उनको अच्छा ज्ञान था । अय्यर जी ने भी उनकी सहायता से पर्याप्त तात्त्विक जानकारी प्राप्त की। इससे ज्ञात होता है कि स्त्रियां भी अपने धर्म मत की पर्याप्त जानकारी रखती थीं।
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