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________________ १८४ तमिल जैन साहित्य का इतिहास के साथ, आदिवराहमूर्ति और शम्भु ( विष्णु और शिव ) देवताओं की भी वन्दना की गयी है ।' यद्यपि वीरशैवों और जैनों में भीषण संघर्ष हुए थे, तथापि दोनों की समन्वयात्मक स्थिति भी आ गयी थी । वीरशैवों ने यह आम घोषणा प्रसारित की कि जो जैन विरोधी होते हैं, वे सब शिवद्रोही और 'संगमर्' ( शैवाचार्य ) के शत्रु माने जाएंगे 2 इसी काल में, तीर्थंकरों की मूर्तियों के साथ शिवलिंग मूर्तियाँ भी रखी और पूजी जाने लगीं । इसका प्रमाण एक शिलालेख में प्राप्त होता है । 3 विजयनगर - शासकों की कई स्त्रियों जैनधर्म की अनुयायी थीं । तत्कालीन राजाओं और रानियों ने कई जिनालय निर्मित कराये और उनके संचालन के निमित्त पर्याप्त सम्पत्ति देवस्व के रूप में रख छोड़ी। उनकी सभाओं में कई जैन पण्डित आस्थान विद्वानों और कवियों के रूप में विद्यमान थे । कृष्णदेव राय के समय में, वादि विद्यानन्द नामक सुप्रसिद्ध जैनमहापण्डित एवं सुवक्ता थे । उन्हीं के समय में, मंडल पुरुषर् नामक जैनविद्ववर् ने 'चूळामणिनिघंटु' नामक बृहत् तमिलकोश की रचना की । उस निघंटु और उसके रचयिता को तमिल भाषी आज भी आदरपूर्वक स्मरण करते हैं । उस समय के कई जैनग्रंथ अब तक प्रकाश में नहीं आये हैं । अगर वह साहित्य प्रकाश में आये तो अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्य ज्ञात हो सकते हैं । जैन विद्वानों और उनकी अमूल्य रचनाओं का समादर जैनेतर विद्वान् भी करते थे और करते हैं । वैदिक मत के विप्रवर नच्चिनाविकनियर ने जैनमहाकाव्य 'जीवकचिन्तामणि' की व्याख्या लिखने के लिए जैनदर्शन का विधिवत् सांगोपांग अध्ययन किया । समन्वय की यह परम्परा आज तक चली आ रही है । इस युग में चक्रवर्ति नयिनार् प्रसिद्ध जैनतत्त्ववेत्ता विद्वान् हो गये हैं । उनके पूज्य पिता अप्पासामि नयिनार के पास ही 'तमिल दादा' स्व० डॉ० उ० वे० स्वामिनाथन् अय्यर ने जैन तत्त्व का अध्ययन किया था । नयिनार् जी का गाँव विडूर जैन धर्म का केन्द्र माना जाता है । 'चित्तामूर मठ' तमिलभाषी जैनियों के लिए उत्तम विद्यापीठ या ज्ञानपीठ बन गया । तिरु० वि० १. E. C. VII. K. p. 47. २. E. C. V, BL. 128. . M. A. R. 1925 p. 15. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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