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________________ १८. मिल जैन साहित्य का इतिहास परणि-प्रबंधकाव्य के प्रारम्भ में आराध्य देवी के साथ, अपने देश के नरेश का वन्दनात्मक आख्यान किया जाता है और कवि देवता से प्रार्थना करता है कि राजा का सदा मंगल हो और वह सर्वविजयी बने । फिर पराजित राजा के देश से बंदिनी के रूप में लायी गयी नगर नारियों का वर्णन रहता है। उन नारियों के आवास को तमिल में 'बेळम्' हरम ( harem ) कहते हैं, जिसका अर्थ है कमनीय स्थान । कवि ग्रन्थारम्भ में राजासक्त उन नारियों का नख-शिखवर्णन करके, उनसे प्रार्थना करता है कि द्वार खोलें और नरेश की समरयात्रा और विजयवार्ता का वर्णन सुनें । ऐसी कई विशिष्ट परम्पराओं तथा नीतियों को हम 'परणि' प्रबंधों से जान लेते हैं। इन 'परणि' प्रबंधों में 'कलिंगत्तु परणि' सबसे उत्तम माना जाता है। चोलनरेशों ने जब अन्य देशीय शत्रु नरेशों पर चढ़ाई की और उनको परास्त कर लौट आये, तब 'समर कथा' के रूप में यह प्रबंध रचा गया। संघकालीन काव्य में, समर के वीभत्स काण्ड का वर्णन पिशाचों के भोज के रूप में हुआ है । पश्चात्वर्ती काव्यों में यह आंशिक स्थान पाने लगा। किन्तु, समर दृश्य को पूर्ण प्रबंध का रूप केवल 'परणि' काव्यों में ही मिलता है। इस प्रबंध में बीभत्स, रौद्र, वीर, भयानक, अद्भुत आदि रसों के स्थायी भावों का वर्णन अधिक मात्रा में हुआ है। कवि के अपूर्व चमत्कार से असुन्दर भी सुन्दर दीखते हैं, कुत्सित दृश्य भी कोमल दृश्य बन जाते हैं। पिशाचों का वर्णन कवि-कल्पना की उत्तम उपज है, जो पढ़ते ही बनता है । उस वर्ग के अनुरूप इंद्रजाल, मायावी चेष्टा, अट्टहास और विस्मयकारी कृत्यों के सजीव चित्रण हैं। अन्य 'परणि' प्रबंध चोलनरेशों की विजयवार्ताओं को 'कॉप्पत्तु परणि' 'कूडल संघमत्तु परणि' 'कलिंगत्तु परणि' ( कुलोत्तुग चोलन् के शासनकाल में, उसके सेनापति करुणाकर तॉण्डमान् द्वारा कलिंग देश पर की गयी चढ़ाई का प्रशस्तिमय प्रबंध) और विक्रम चोलन् द्वारा प्राप्त कलिंग-विजय का वर्णन करनेवाला प्रबंध-इस तरह दो 'कलिंगत्तु परणि' हैं ) आदि कई 'परणि' प्रबंध थे। उनमें केवल 'कलिंगत्तु परणि' ही जिसके रचयिता जयंकोण्डार थे, आज तक उस परम्परा का शीर्षस्थ प्रबंध माना जाता है। इन 'परणि' ग्रन्थों से बहुतसी ऐतिहासिक बातें उद्घाटित होती है। 'कलिंगत्तु परणि' के रचयिता . इस सुप्रसिद्ध प्रबंध-काव्य के रचयिता भी कम विख्यात नहीं थे। उनका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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