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काप्पियम्-२ सुलभ हो गया कि यह वणिक् पागल है, इसीलिए ऐसा कर रहा है। अन्त में महारानी को सत्य का पता चल गया। दुष्कर्म का फल समझिए कि मन्त्री की अकाल मृत्यु हो जाती है और वह साप के रूप में पैदा होता है । वणिक भद्रमित्रन् जैनमुनि के धर्मोपदेश से धर्माराधन में श्रद्धापूर्वक तत्पर हुआ। अपने पुत्र की इस स्थिति से असंतुष्ट होकर वणिक-माता आत्महत्या कर लेती है, और बाघिन के रूप में पैदा होती है । वणिक् अपनी सहज मृत्यु के उपरान्त महारानी के गर्भ से जन्मा। उधर मन्त्री का जीव, जो कि सर्पयोनि में जन्मा था, उसके डसने से महाराज की मृत्यु हो गयी और सांप भी तत्काल मर गया जिसने फिर एक जानवर के रूप में जन्म लिया। राजा भी मरकर हाथी बना। राजकुमार के रूप में जन्मा वणिक् भद्रमित्रन् धर्मोपदेश सुनकर तपस्या के प्रभाव से चारणऋषिधारी मुनि हुआ। गज के रूप में जन्मे राजा को सांपरूपी मन्त्री पुन: डस लेता है। राजा जन्मबंधन से सदा के लिए छूट जाता है।...' इस प्रकार एक ही व्यक्ति के विविध जन्मों का वर्णन इस पुराणम् में है। इन सबको अन्ततः स्वर्ग या मोक्ष मिल जाता है । कथारम्भ में बताया गया विद्याधर ही, जिसने साधुवर संजयन्त मुनि को कष्ट दिया था, मन्त्री और सांप के रूप में जन्मता रहा । अपनी जन्म परम्परा का वृत्तांत सुनकर वह दुर्मति विद्याधर भी सद्गति प्राप्त करने के लिए तपस्या करने लगा। जयन्तन और उनकी माता, दोनों जो वणिक् भद्रमित्रन् और उसकी माँ के रूप में जन्मे थे, बाद को मेरु तथा मन्दरन् के नाम से राजकुमारों के रूप में अवतरित हुए। फिर तपस्या-साधना करके प्रभु के समवसरण में पहुंच गये। ___ इस प्रकार सुकर्म और दुष्कर्म के फलाफलों की शृंखलाबद्ध पारम्परिक अनुगति को विविध वृत्तान्तों के द्वारा व्यक्त करना ही इस जैनग्रंथ 'मेरुमंदर पुराणम्' का विषय है। ___इस ग्रंथ के रचयिता वामन मुनि तमिल और संस्कृत दोनों भाषाओं के प्रकाण्ड पंडित थे। ____ इस ग्रन्थ में कुल १४०५ पद्य हैं। इस ग्रंथ के दो पद्य 'शान्तिपुराण' के पद्य के नाम से 'पुरत्तिरटु' में संकलित हैं। संभव है, अपने पूर्ववर्ती ग्रन्थकारों के पड़ों को वामनमुनि ने यथावत् उद्धृत किया है।
जैन-साध्वी कवयित्रियाँ १. कवुन्ती
जैन साध्वियों को 'कुरत्तिहळ' कहा जाता है । प्राचीन अभिलेखों में तथा वाङ्मय में भी यही नाम मिलता है । साथ ही 'आरियांगनहळ' (आर्यिकाएँ),
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