SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 189
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७६ तमिल जैन साहित्य का इतिहास लघुकाव्य : शान्तिपुराणम् और नारदचरितै । 'पुरत्तिरटु' नामक फुटकल पद्यों का एक संग्रहग्रन्थ चार-पांच सौ वर्ष पूर्व संकलित किया गया। उसमें 'शान्तिपूराणम्' और 'नारदचरित' नामक दो जैन ग्रन्थों के कुछ पद्य मिलते हैं । जो पद्य 'शान्ति-पुराणम्' के नाम से निर्दिष्ट हैं, उनमें दो मेरुमन्दरपुराणम्' (जैन तमिल पुराणग्रंथ ) में भी हैं। संभव है, 'मेरुमन्दर पुराणम्' के रचयिता ने पूर्ववर्ती जैनमतानुयायी कवि के पदों को आदरवश अपनी रचना में यथावत् स्थान दिया हो। 'शान्तिपूराणम्' ग्रंथ नवीं शती में कन्नड में रचा गया, जिसमें सोलहवें तीर्थकर शान्तिनाथ का चरित्र है। इसी प्रकार तमिल में भी हुआ होगा। 'नारदपुराणम्' में एक अहिंसोपासक नरेश की कथा है, जो हत्या या हिंसा का नाम तक नहीं लेता था। इसमें संन्यास और तपस्या के प्रभाव का विशद् वर्णन है। श्रीपुराण में नारद और पर्वत की प्रसिद्ध कथा है, उसी के आधार पर यह ग्रन्थ भी रचा गया लगता है । लघुकाव्य : मेरुमन्दर पुराणम् ध्यातव्य है कि 'नीलकेशी' काव्य के व्याख्याकार वामनमुनि ने 'मेरुमन्दर पुराणम्' नामक काव्य की रचना की है । वे सोलहवीं शती के थे। काव्यकथा वैजयन्तन् और उसके दो भाई जयन्तन तथा सजयन्तन् तीनों 'सुयंभू (स्वयंभू) तीर्थकर के सदुपदेश से मुनि बन गये । वैजयन्तम् तीनों लोकों के लिए सुवन्ध 'चूडामणि' बन जाते हैं । उनके भाई संजयन्तमुनि अपने को सताने वाले एक विद्याधर को उदारतापूर्वक क्षमा कर देते हैं। उनकी इस आदर्श शान्त प्रकृति ने उन्हें भी सर्ववन्ध बनाया। इनके भाई जयन्तन् विद्याधर के अतिक्रम से ऋद्ध हो उठे। उस समय अध्यापन् नामक साधु ने पूर्वजन्मवृन्तान्तों से जयन्तन् को अवगत कराया। वह वृत्तान्त इस प्रकार है 'भद्र मित्रन नामक वणिक् (श्रेष्ठी) अपनी चिरसंचित सम्पत्ति गुप्त रूप से एक मन्त्री के पास धरोहर के रूप में रखकर विदेश गया और लौटने पर जब उसने अपने मित्र मन्त्री से अपनी धरोहर की मांग की, तो मन्त्री ने आश्चर्य प्रकट किया कि तुम क्या कोई नशा कर के आये हो। इस अप्रत्याशित प्रवं. चना से क्षुब्ध हो भद्रमित्रन् शोर मचाने लगा। उसकी.उत्तेजना और बाकोश का मन्त्री ने लाभ उठाया और लोगों के समक्ष यह साबित करना, उसके लिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy