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________________ १७२ तमिल जैन साहित्य का इतिहास पीछा करते हुए उस गुफा तक चला गया। राजकुमार की गर्जना सुन तन्द्रामुक्त शेर बाहर निकला और तिविट्टन् पर प्रपटा। दोनों में धमासान द्वन्द्व छिड़ गया और तिविट्टन ने उस शेर के मुंह को फाड़कर मार डाला। राजकुमार का पराक्रम देख, दूसरे विद्याधर नरेश ज्वलनजटी ने अपनी पुत्री स्वयंप्रभा का उसके साथ विवाह कर दिया। यह जान अश्वकंठ बहुत क्रुद्ध हुआ और अपनी विपुल सेना के साथ तिविट्टन् से लड़ने आया । दोनों पक्षों में घमासान युद्ध हुआ। अन्त में तिविट्टन् के हाथों अश्वकंठ का वध हुआ । राज्य में युवराज-पद पर अभिषिक्त होने के बाद तिविट्टन् 'कोटि कुन' नामक पहाड़ी को हाथ से ऊपर उठा लेने के उपलक्ष्य में 'वासुदेवन्' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उसकी पुत्री चोतिमाल ( ज्योतिमाला ) ने अपने मामा के पुत्र अमुदसेनन् ( अमृतसेन ) को स्वयंवर में माला पहनाकर पति के रूप में वर लिया। उसी स्वयंवर में तिविट्टन् के पुत्र विजयन् और उसके मामा की लड़की-दोनों का विवाह हुआ । अन्त में महाराज पयापति ने दीक्षा ग्रहण कर तपस्या की और कर्मनिर्जरा कर के कैवल्यपद प्राप्त किया। काव्यान्त में कवि कहते हैं, 'कालदेव और कामदेव दोनों पर विजय पाकर महाराज पयापति ने कैवल्यज्ञान को प्राप्त कर लिया। उनकी साधनाकीर्ति समस्त दिशाओं में फैल गयी। वस्तुतः अपने ज्ञान की प्रभा से वे समस्त जगत् के लिए समुज्ज्वल 'चूळामणि' (चूडामणि) बन गये।' इस कथा को बहुत मधुर शब्दों में कविवर तोलामोळि देवर ने संजोया है । राजनैतिक बातें, शासन के विधि-विधान, दूत-संदेश की रीतियां, जनता के त्यौहार और व्यवहार, अमात्यों की मंत्रणा-सभा, स्वयंवर, मायावी युद्ध आदि रोचक विषयों का समावेश कर इस कोमल काव्य का प्रणयन किया गया है। तमिल काव्य परम्परा के अनुसार ऐंतिण ( पांच प्रकार के प्रदेश ) का परिचय और देश-नगरादि का वर्णन करने पर भी, संस्कृत काव्य-परम्परा का निर्वाह पर्याप्त मात्रा में हुआ है । प्रसिद्ध शैवसंत पुराण के रचयिता लब्धप्रतिष्ठ कवि श्री शेक्किळार ने 'चूळामणि' काव्य की शैली अपने ग्रन्थ के लिए अपनायी है। विष्णु के अवतार कण्णन् (कृष्ण) की कथा और उनकी उपासना तमिलनाडु में बहुत प्रचलित हुई। जनमनहारिणी वह भक्तिधारा मुख्यतया पल्लवों के शासन काल में प्रवाहित थी। उसी समय कई वैष्णव कवियों ने कृष्ण सम्बन्धी अनेक गीत तथा प्रबंध-काव्य आदि रचे । वैष्णवेतर कवि भी उस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org:
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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