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________________ काप्पियम्-२ १७१ है, ऐसी बात नहीं है । 'चन्दन् दिवाकरम्' ग्रन्थ की रचना के लिए समुचित प्रोत्साहन एवं सहयोग एक पल्लवनरेश ने दिया था। उसी प्रकार 'चूळामणि' के प्रणयन के हेतु भी, उत्प्रेरक एवं सहायक बनने का गौरव किसी पल्लवनरेश को हो सकता है। अतः संभव है कि श्रवणबेळगोळ से प्राप्त शिलालेख में जिस ग्रन्थ का उल्लेख है, वह तमिल काव्य 'चूळामणि' ही हो। पूर्वोक्त 'तनिप्पाडल' ( फुटकल पद्य ) में चूळामणि के कवि तोलामोळि देवर् को धर्मतीर्थ का श्रीचरणसेवी बताया गया है, इसलिए यह निर्णय करना उचित जॅचता है कि सातवीं और नवीं शताब्दियों के मध्य 'चूळामणि' की रचना हुई। दसवीं शती की छन्दरचना 'याप्परुंगलवृत्ति' की व्याख्या में 'चूळामणि' के पद्य उद्धृत हैं । अतः यह सिद्ध है कि दसवीं शताब्दी के पूर्व ही 'चूळामणि' का प्रणयन हो चुका था तथा वह प्रसिद्ध भी हो गया था। 'चूळामणि' की विशेषताएँ ____ यह काव्यकथा 'श्रीपुराणम्' से ली गयी है। आचार्य गुणभद्र ने संस्कृत में श्रीपुराणम् ( उत्तरपुराण ) की रचना की है। वह कथा समाप्त हुई, तमिल की उच्चारण एवं प्रयोग-परम्परा के अनुसार नामों का रूपपरिवर्तन हुआ है-किन्तु यह भी सम्भव है कि काव्यपात्रों और स्थानों के नामों के रूपपरिवर्तन में मूल नामों से सहारा लिया गया हो। उदाहरणार्थ काव्यपात्रों के नाम देखिए । महाराज पयापति (प्रजापति); महारानी मिगावती (मृगावती), राजकुमार तिविट्टन् (त्रिपृष्ठ), सयंपवै (स्वयंप्रभा) आदि । स्थानों के नाम हैं-सुरमै सुरम्य देश, पुटपमाकरण्डम् (पुष्पमहाकरण्डम् ) पुष्पवाटिका, आदि । कथावस्तु राजा पयापति ( प्रजापति ) के दोनों पुत्र तिविट्टन ( त्रिपृष्ठ ) और विजयन् दोनों ने विद्याधर-चक्रवर्ती अश्वकंठ की अधीनता स्वीकार नहीं की। अतएव अश्वकंठ ने अपने एक वीर को यह आज्ञा देकर भूलोक में भेजा कि उन राजकुमारों की हत्या कर दो। वह विद्याधर वीर सिंह का रूप धारण कर राजधानी की ओर दहाड़ता हुआ आया। यह बात सुनकर वीरवर तिविट्टन् स्वयं ललकारता हुआ निकल आया। उसकी संत्रासक मूर्ति देख सिंहरूपी विद्याधर भयकंपित हो निकटवर्ती एक गुफा के अंदर घुस गया, जहाँ एक वास्तविक सिंह पहले से सो रहा था । तिविट्टन् विद्याधर सिंह का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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