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तमिल जैन साहित्य का इतिहास (छियानबे ) व्रणचिह्नों से विभूषित हैं जो आपकी विपुल विजयवैजयंती के उत्तम द्योतक हैं।'
चोलाधीश अरिजयन् के पश्चात्वर्ती राजाओं को 'उत्तमशीली', 'उत्तमन्' आदि उपाधियां मिलीं। बाद के राजराजन् के साथ 'चक्रवर्ती', 'सार्वभौम' आदि भावों के उपनाम जोड़े गये थे।
किन्तु, कविवर तिरुत्तक्क देवर ने विजयादेवी के पिता के रूप में जिस 'अरिजयन्'की चर्चा की, वह तो विदेहनरेश' था। पता नहीं, विदेहों और चोळों में कब वैवाहिक संबंध स्थापित हुआ। यह भी संभव है कि मूल ग्रन्थ के नाम को छोड़कर तमिलनाडु में सुप्रचलित नाम को अपना लिया हो और स्वयं चोळकुलसंतान होने के कारण, अपने सम्माननीय पूर्वज का नाम रखने में गौरव का अनुभव किया हो। काव्य का उद्देश्य और संकेत
कवि चोळकुल के थे, अतः उनके मन में चोळ साम्राज्य का भावी या वर्तमान ढाँचा साकार हुआ होगा। अपनी इच्छा या कल्पना को रूप देने के लिए ही जैन पुराणांतर्गत जीवकन् की कथा को काव्य का विषय बना लिया गया।
जैसे वीरवर जीवकन् ने कई राजपरिवारों से सम्बन्ध स्थापित कर अपने को महाबली बना लिया, वैसे ही चोळराजाओं को भी राजपरिवारों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करना उचित है-इस आशय को कविवर ने अपने काव्य में आदि से अन्त तक व्यक्त किया है। इसी का परिणाम या प्रभाव है कि चोळनरेशों ने आस-पास के पल्लव, आन्ध्र आदि अन्य राजकुलों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध जोड़ लिया था। __ अत्यधिक कामासक्ति के कारण जैसे सच्चंदन ( सत्यन्धर ) के राज्य की और सुशासन की दुर्गति हुई, वैसे ही अपने समय में चोलों की स्थिति भी अवनत थी। सम्भवतः उनको जागृत करने के लिए ही कवि को ऐसे प्रभावशाली ग्रन्थ की रचना की अन्तःप्रेरणा हुई । चोळ नरेश के 'चक्रवर्ती' होने का जो स्वप्न कवि ने अपनी रचना में देखा, वह बाद में राजेन्द्र चोळन् के समय में साकार हुआ। सबसे बड़ी विशेषता इस काव्य की यह है कि
१. तमिल में 'वितेय' दिया गया है । संभव है, इसका असलीरूप विदेश या विदेह हो।
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