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________________ काप्पियम्-२ १६५ सत्कामना के सहारे जीवकन् ने अपनी आठों रानियों के साथ सुखी जीवन बिताया। उसके आदर्श सुशासन में सारा देश सुसम्पन्न था, जनता के सुखहर्ष का क्या कहना? एक दिन जीवकन् निकटस्थ तपोवन में गया। वहां एक अशोकवृक्ष के नीचे दो चारणऋद्धिधारी मुनि ध्यानस्थ खड़े थे। जीवकन् ने उनके चरणों में प्रणाम कर मुक्तिप्राप्ति के साधन नियमानुष्ठानों का उपदेश देने की प्रार्थना की। उन्होंने विस्तार से जैन धर्म का तत्त्वोपदेश किया और बताया कि जीवन का मूल ध्येय मुक्तिप्राप्ति है । यह सब ग्रहण कर जीवकन् महल में लौट आया और अपनी आठों देवियों के समक्ष दीक्षा ग्रहण करने का विचार प्रकट किया। देवियां भी उसी के साथ संन्यास ग्रहण करने के लिए तैयार हो गयीं। एक शुभ दिन जीवकन् ने अपने आठों पुत्रों को पास बुलाकर उनको शासन का भार सौंपा और तपस्या के लिए निकल पड़ा। जीवकन् की आठों रानियां भी अपनी सास साध्वी विजयादेवी की सेवा में चली गयीं और विधिवत् दीक्षा ग्रहण कर तपस्या में लीन हो गयीं। जीवकन् ने समवशरण में जाकर तीथंकर वर्धमान के साक्षात् दर्शन किये और सुधर्म नामक गणधर के पास सर्वसंग-परित्याग कर विधिवत् दीक्षा ग्रहण कर ली। तदनंतर उसने विपुलगिरि पर घोर तपस्या की। तपस्या के प्रभाव से जीवकन् अपने कर्मबंधन से मुक्त हो गया। काव्य की विशेषताएँ जीवकचिन्तामणि काव्य रचनाशिल्प तथा रसव्यंजना की दृष्टि से तमिल भाषा का अनुपम और समुज्ज्वल कण्ठाभरण है। कवि तिरुत्तक्कदेवर काव्यारम्भ में क्रमशः देश, नगर, वीथी, महल, नरेश, महिषी आदि का रोचक वर्णन करते हैं। यद्यपि ये स्थान तथा पात्र काल्पनिक ही हैं, तथापि इनके चित्रण में कवि की मौलिक प्रतिमा तथा आदर्शोन्मुख प्रेरणा स्पष्ट दीख पड़ती है । 'युटोपिया' ( Utopia ) जैसे काल्पनिक आदर्शदेश के रूप में ही इस काव्य का एमांगदम् ( हेमांगद ) देश भी है। इसी काव्य शैली के अनुसरण में परवर्ती कवियों ने नाटु पटलम् ( देशवर्णन-सर्ग ), नगर-पटलम् आदि का वर्णन किया है। स्थानों के अतिरिक्त पात्रों को भी तमिल संस्कृति तथा तमिल प्रकृति के अनुरूप चित्रित करने में कवि ने कहीं भी संकोच नहीं किया। क्या प्रकृतिवर्णन, क्या प्रेमगाथा, क्या समरचित्रण, क्या राषनैतिक षड्यंत्रों का उल्लेख, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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