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________________ १६४ तमिल जैन साहित्य का इतिहास साथ हुई और तत्काल ही एक सुकुमार पुत्ररत्न का जन्म हुआ । श्मशान की अधिष्ठात्री देवी ने स्वयं एक सहेली के रूप में आकर विजयादेवीं की सहायता की और नवजात शिशु को किसी दूसरे को सौंपने की सलाह दी। उस समय नगर के प्रसिद्ध वणिक् कन्दुक्कटन ( गन्धोत्कट ) अपने मृत शिशु का दाहसंस्कार करने के लिए श्मशान में आया । विजयादेवी अपने शिशु को भूमि पर लिटाकर एक पेड़ की आड़ में छिप गयी । वणिक बड़े आनन्द को लेकर घर गया और लोगों में कहा कि मेरा मृत ही पुनः जीवित हो गया है । पर उसको तो मालूम ही था कि श्मशान में लब्ध शिशु राजा सच्चंदन का सुपुत्र था । शिशु के हाथ में राजमुद्रांकित अंगूठी देखकर उसको यह तथ्य ज्ञात हुआ । शिशु को उठाते समय देववाणी-सी सुनायी पड़ी, "जीब ! " इसलिए वणिक् ने उस पुत्र का नाम जीवकन् रखा और बहुत प्यार से उसका लालन-पालन किया । इधर जीवकनु की जननी विजया देवी चली गयी । तपस्या करने जीवन् कई विद्याओं में पारंगत हुआ । 'अच्चणंदी ( आर्यनन्दी ) से वह विद्याग्रहण करता था; एक दिन आचार्य ने जीवकन् को उसकी जीवनी का रहस्य बता दिया और यह सलाह भी दी कि एक वर्ष तक अपने को प्रकट न करो। इस बीच राजमापुरम् के ग्वालों ने एक दिन अपने शासक कट्टियंकारन के पास आकर शिकायत की, "महाराज हमारी गायों को जंगल के भीलों ने घेर लिया और हमें भी मारकर भगा दिया। गायों को उनसे छुड़ाकर हमारी रक्षा करें।" राजा के सैनिक भीलों के सामने हारकर भाग आये, तो जीवकन् स्वयं अपने साथियों के साथ जाकर भीलों से गायों को उसकी ख्याति फैली । फिर, नगर के प्रधान श्रेष्ठी श्रीदत्तन् की गंधर्वदत्ता को 'वीणास्वयम्बर' में, याऴ् ( वीणा ) - स्पर्धा में दिया और उस सुन्दरी के साथ जीवकन् का विधिवत् विवाह हुआ । गुणमाला नामक युवती को मत्त गज की चपेट से बचाने के कारण, वह भी जीवकन् की जीवनसंगिनी बनी। जीवकन् ने सांप के डसने से मृतप्राय पद्मोत्तमा को जीवित कर दिया । उपहारस्वरूप वह सुन्दरी भी जीवकन् की पत्नी हुई । इसी प्रकार केमचरी, कनकमाला, विमला, सुरमञ्जरी और लक्षणादेवी नामक सुन्दरियों के साथ भी जीवकन् के विवाह हुए। अपने मामाजी तथा विदेह देश के राजा गोविन्दन की सहायता से जीवकन् ने कुटिल मन्त्री कट्टियंकारन् का वध कर, अपना खोया राज्य प्राप्त कर लिया। जनता के अपार आनन्द और Jain Education International For Private & Personal Use Only छुड़ा लाया । पालिता पुत्री पराजित कर www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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