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________________ १६२ तमिल जैन साहित्य का इतिहास तरह शैवधर्म का प्रभाव बिलकुल न लाकर, जैनधर्म का उत्कर्ष दर्शाया गया है। उसी का अनुवाद है कोंकुवेळिर का यह 'पेरुम्कथै'।" किन्तु यह निर्णय नहीं माना जा सकता। तमिल रचनाशैलियों का समावेश करके कवि ने इस काव्य में अपनी मोलिक प्रतिभा का अच्छा परिचय दिया है। इस 'पेरुम्कथै' काव्य का रचनाकाल सातवीं शती माना जाता है । 'उदयणकुमारकाव्यम्' नामक एक लघु काव्य पाया जाता है जो जैन कवि की रचना है। पर यह तो बहुत अर्वाचीन ग्रन्थ है । कोंकुवेळिर का 'पेरुम् कथै' काव्य तो तिरुमंगै आळ्वार के भी पूर्व का होना चाहिए। 'मणिमेखले' के रचनाकाल के आसपास भी इसकी रचना हुई होगी, ऐसा माना जा सकता है। इसलिए इस कोमल काव्य को सातवीं शती का ही मानना युक्ति युक्त है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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