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________________ 1 तमिल जैन साहित्य का इतिहास कट्टर एक तो ओट्टक्कूत्तर उच्च कोटि के मधुरवाक् कवि थे, और दूसरी ओर वे शैव थे । फिर भी उन्होंने काव्यमाधुर्य पर रीझकर 'वळेयापति काव्य ' का मनन किया, जो कि एक धर्मविरोधी अर्थात् जैन कवि का जैनधर्मीय ग्रन्थ था । काश, यह समग्र ग्रंथ मिल जाता ! १६० पेरुं कथै इस काव्य को पंच महाकाव्यों में स्थान न मिलने पर भी, रचनाशैली तथा काव्यसौष्ठव की दृष्टि से इसे महाकाव्य कह सकते हैं । 'कुंडलकेशी' और 'वळयापति' दोनों की अपेक्षा इसका काव्यस्तर ऊंचा ही है । शिलप्पधिकारम् और मणिमेखले की तरह यह काव्य भी ' अकवल्' छन्द में है । इसके रचयिता का नाम कोंकुवेळिर् है । इसके पद्य 'शिलप्पाधिकारम्' और 'मणिमेखलै' के पद्यों की तरह 'न'-कारान्त हैं । इस पद्धति को प्रथम लक्षणग्रन्थकार तोलकाप्पियर ने 'इयैपु' और 'वनप्पु' कहा है । उन महाकाव्यों की ही भांति यह काव्य भी कथानक के अनुकूल एक ही छन्द में है और 'अन्तादि' नामक शब्दालंकार से भी युक्त है । व्याख्याकारों की टिप्पणियों से मालूम होता है कि इस 'पेरुम् कथै' काव्य का अपरनाम 'उदयणन् कथै' भी था । वस्तुतः यह काव्य भी गुणाढ्य के सुविख्यात ग्रन्थ 'वृहत्कथा' का ही परिमार्जित तमिल रूप है। तमिल काव्यशैली के अनुसार प्रदेशवर्णन के प्रसंग में, उत्तर भारत का वर्णन तमिल देश के रूप में ही किया गया है । उदयण और वासवदत्ता की जोड़ी कम्बन् के राम व सीता की तरह तमिल संस्कृति के रंग में रंग गयी है । प्रेमी-प्रेमिका का संदर्शन, सम्मिलन और प्रेमविकास की परम्परा तमिल काव्यशैली के अनुसार ही उपस्थित की गयी है । यद्यपि इस काव्य में विमान आदि का काल्पनिक वर्णन हुआ है, तथापि समय, समाज और जनजीवन को यह काव्य जितना अधिक प्रतिबिम्बित करता है, उतना अन्य काव्य में अनुपलब्ध है । नारी की महिमा, विद्या का प्रभाव, लोगों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण, राजनीति की चालें, सत्ताधीशों की चालें आदि कई बातें बहुत ही रोचक ढंग से इस 'उदयणन् कथै' में वर्णित हैं । इसके चरितनायक उदयण हैं, फिर भी उसके मित्र यूगी को भी चरितनायकः मानना पड़ता है । समग्र काव्यकथा में गति तथा घटनाप्रवाह यूगी के ही अस्तित्व से होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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