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________________ काप्पियम्-१ लिया)।" किन्तु, गाथा में दस वादियों का उल्लेख है। वैदिक मत और प्रमाण मत दोनों एक ही थे । आजीवक तथा निगंठ (जैन) मत के पारस्परिक सम्बन्ध का दर्शन 'शिलप्पधिकारम्' में भी है । 'लोककायतिक मत' के नाम से प्रख्यात भूतवाद भी उस समय काफी प्रचार में था। अतः अन्त में निर्दिष्ट 'ऐ वहै समयम्' ( पाँच प्रकार के मत ) ये हो सकते हैं : वैदिक मत, प्रमाण मत, आजीवक मत, निगंठ ( जैन ) मत और लोकायतिक । बाद के बौद्धग्रन्थ 'नीलकेशी' में इन पांचों मतों के साथ सांख्य और वैशेषिक मतों को भी जोड़ लिया गया है । अत: मालूम होता है, 'मणिमेखलै' में अतिरिक्त रूप से वणित वादों को बाद में जोड़ दिया गया है । __ इस काव्य में वाद-प्रतिवाद, परमतखण्डन एवं स्वमतमण्डन आदि बातें स्पष्ट स्थान नहीं पा सकीं; फिर भी मणिमेखला प्रचलित समस्त मतों पर छानबीन अथवा टीका-टिप्पणी प्रहार अवश्य करती है; वह भी अपने अभीष्ट धर्म पर दृढ़तर विश्वास के लिए। एक बात तो हमें माननी ही पड़ेगी कि शुष्क धार्मिक चर्चा को लेकर सुन्दर काव्य-ग्रन्थ रचने की परम्परा इस 'मणिमेखले' से प्रारम्भ हुई है । इसी क्रम में कट्टर धर्म-ग्रन्थ 'कुण्डलकेशी' नामक बौद्ध-ग्रन्थ की रचना हुई। इस ग्रन्थ के प्रत्युत्तरस्वरूप 'नीलकेशी' नामक अद्भुत जैन काव्य ग्रन्थ का प्रणयन हुआ। नीलकेशी 'नीलकेशी' अर्वाचीन रचना है। इसके रचयिता के नाम का कहीं उल्लेख नहीं मिलता है। रचयिता ने लिखा है कि उसने एक सपना देखा और उसकी प्रेरणा से यह ग्रन्थ रचा है। पांचाल देश, कुण्डलवर्तनम् नामक नगर, उसके राजा समुद्रसारन्, उस नगर के चारों ओर फैले 'पलाल्यम्' नामक श्मशान, उस प्रदेश के मन्दिर, उनमें किये जानेवाले हत्याकांड तथा भूत-पिशाचों के घोर कृत्य इत्यादि का रोचक वर्णन 'नीलकेशी' ग्रन्थ में है। यह 'ऐंचिरु काप्पियम् ( पंच लघुकाव्यों) में एक है।' काली देवी के मंदिर में होनेवाली बलिस्वरूप जीवहत्या को मुनि चन्द्र ने रोक दिया। इससे असंतुष्ट हुई काली देवी नीली नामक स्त्री के साथ, अपना १. पंच लघुकाव्यों के नाम ये हैं : १. यशोधरकाव्यम्, २. चूळामणि, ३. नागकुमार काव्यम्, ४. उदयणकाव्यम् और ५. नीलकेशी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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