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तमिल जैन साहित्य का इतिहास 'गै' वृक्ष के नीचे खड़ी थी, जिसका एक स्तन स्वयं उसीने नष्ट कर दिया था। 'उण्णि' का अर्थ है कणिका जो कमलबीज माना जाता है। सम्भवतया कण्णकि का संस्कृत रूप 'कणिका' बनाकर, उसके अनुवाद के रूप में 'उण्णि' का प्रयोग किया गया। 'शिलप्पधिकारम्' में भी बताया गया है कि व्याध लोगों ने जिनको 'कुरवर' कहते हैं, कण्णकि को 'गै' वृक्ष के नीचे देखा । अतः दोनों घटनाओं में समानता अवश्य है। संघकाल में 'शिलप्पधिकारम्' कथा तथा काव्य का प्रचार-प्रसार काफी हो चुका था।
इस महाकाव्य को संघकाल का उत्तरकालीन ग्रन्थ मानना उचित होगा। इसके पर्याप्त प्रमाण हैं। आक्षेप की जो गुंजाइश दिखाई देती है, वह शायद भ्रमपूर्ण है। अथवा बाद के काव्यप्रेमियों द्वारा जोड़ी गयी बातों के आधार पर ही होगी। इस ग्रन्थ को संघकालीन मान लेने के लिए केवल यह एक प्रमाण ही पर्याप्त होगा कि तत्कालीन धार्मिक स्थिति का पूरा यथार्थ चित्रण इसमें मिलता है । बलराम, मुरुगन् ( कार्तिकेय ), विष्णु, शिव आदि देवताओं के मन्दिर के वर्णन ही नहीं, अपितु वन्दनाएं भी कवि ने अपनी ओर से और अपने पात्रों से करायीं। ऐसी सामासिक एवं समरस संस्कृति और धार्मिक स्थिति को आळ वार तथा नायन्मार ( वैष्णव-शैव ) आदि संतों के समय के पहले ही अधिक फैली हुई पाते हैं। इळंगों अडिगळ ने उक्त संस्कृति और धार्मिक स्थिति का समर्थन अपने काव्य में किया है। सुप्रसिद्ध इतिहासकार श्री रामचन्द्र दीक्षितर् ने भी कई अकाट्य प्रमाणों से यह सिद्ध किया है कि ई० दूसरी शती में ही शिलप्पधिकारम्' का प्रणयन हो चुका था।
इस ग्रन्थ में धार्मिक कट्टरता का आभास तक नहीं मिलता। इसमें विशिष्ट तमिल संस्कृति के मूल तत्त्वों का परिपोषण है जो 'यादुम् ऊरे, यावरुम् केळिर' (देश-विदेश सब हमारी जन्म भूमि है और सारे लोग हमारे प्रिय बंधु हैं )' आदि उत्तमोत्तम सिद्धान्तों से अनुप्राणित है।
___ मणिमेखले मणिमेखले एक लड़की का नाम है। यही इस काव्य की चरितनायिका है। 'शिलप्पधिकारम्' के चरितनायक वणिक-पुत्र कोवलन् की प्रेमिका नर्तकी
१. यह पंक्ति संघकालीन कविवर श्री कणियन् कुन्रनार के पद्य का अंश है।
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