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________________ . १५३ काप्पियम्-१ समय देश में बहुप्रचलित कथाओं (दंतकथाओं, लोककथाओं और पुराणइतिहास-ऐतिह्य वृत्तान्तों) से वे लोग अनभिज्ञ नहीं थे । पञ्चतन्त्र की ब्राह्मणी नकुलवाली प्रसिद्ध कथा इसीलिए "शिलप्पधिकारम्' में स्थान पा सकी कि जनमन में सहज ही पैठ गयी थी। 'पतिनॅण्कोळ् कणक्कु' संग्रह और शिलप्पधिकारम् ___ इळंगो आडिगळ ने शिलाप्पधिकारम् में तिरक्कुरळ का उल्लेख किया है। अतः यह काव्य उससे बाद का सिद्ध होता है। किन्तु पतिनॅण्कीळ कणक्कु अर्थात् अठारहो अग्थों के संग्रह ग्रंथ के बाद ही शिलप्पधिकारम् की रचना हुई, ऐसी बात नहीं है। उस संग्रह में से 'नान् मणिकडिकै', 'आचार कोवै' आदि ग्रंथों की बातों के उद्धरणों के जो प्रमाण पेश किये जाते हैं, उन्हें प्रामाणिक नहीं माना जा सकता। क्योंकि दोनों ग्रन्थों की समान बातें प्राचीन ग्रन्थों की अपनी नहीं हैं । वे तत्कालीन लोकोक्तियां और नीतिवाणियां थीं। अतः संभव है कि वे "शिलप्पधिकारम्' के रचनाकाल में भी प्रचलित रही हों। उन्हीं को इळगों अडिगळ ने अपने महाकाव्य में प्रयुक्त किया होगा। 'शिलप्पधिकारम्' में उल्लेख है कि कपिलवस्तु में बुद्धदेव अवतरित होकर धर्मोपदेश देंगे और वह उपदेश सुनने के बाद ही कोवलन् कण्णकि को निर्वाण-प्राप्ति होगी। इस बात को लेकर कुछ विद्वानों का आक्षेप है कि यह घटना बुद्ध देव की समसामयिक कैसे हो सकती है। किन्तु इसका समाधान यह किया गया है कि काव्य में उल्लिखित बुद्धदेव शुद्धोधन पुत्र शाक्यवंशीय नहीं हैं। बुद्ध के कई अवतार बताये जाते हैं। अतः सम्भव है कि ई० दूसरी शती में अवतरित किसी अपर बुद्धदेव की चर्चा उसमें हो। कोवलन् कण्णकि की कथा आगे चलकर तमिल देश में फैल गयी। सत्रहवीं शती में 'अकवल' छंद में उसी कथा पर लघुकाव्य की रचना हुई। इसमें से कई पद्य, परिमेलळ कर, मयिलनाथर, नच्चिनाक्किनियर, पेराशिरियर, 'याप्पेरुंगलवृत्ति' ( छंदशास्त्र ) के व्याख्याकार इळंपूरणर आदि विद्वानों द्वारा अपनी व्याख्याओं तथा टिप्पणियों में उद्धृत किये गये हैं। इसके अतिरिक्त सती कण्णकि की अमर कथा भी कई लोकगीतों, लघुकाव्यों और निबन्धों द्वारा समाहत थी। ये पद्य आदि प्राचीन व्याख्याकारों की व्याख्याजों, टिप्पणियों आदि में उपलब्ध हैं। संघकालीन ग्रन्थ 'नत्तिण' नामक ग्रन्थ में इस घटना का वर्णन है कि "तिरुमा उण्णि नामक एक सती स्त्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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