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________________ १४८ तमिल जैन साहित्य का इतिहास नामक प्रदेश पर रणांगण में पराजित किया। और चेंगुटुवन् हिमालय से लायी शिला को गङ्गा में नहलाकर, उन पराजित नरेशों के सिरों पर लदवाकर अपनी राजधानी लौट आया। उसे मन्दिर में विधिवत् प्रतिष्ठित किया। उस समय कण्ण कि देवी स्वयं प्रकट रूप में आविर्भूत होकर चेरनरेश को आशीर्वाद देती हैं, पाण्ड्यनरेश का अपराध क्षमाकर उसे पितातुल्य कहकर उसकी प्रशंसा करती हैं । इस महोत्सव में भाग लेनेवालों में सिंहल ( लङ्का ) के तत्कालीन राजा कयवाहु ( गजबाहु ) भी थे और उत्तर भारत से बन्दी बनाकर लाये गये राजा कनक और विजय दोनों को चेरनरेश ने मुक्त कर सम्मान्य मित्र बना लिया। 'शिलप्पधिकारम्' का नामकरण ___ इस महाकाव्य के तीन प्रमुख प्रतिपाद्य विषय हैं, (१) प्रत्येक व्यक्ति को पूर्वजन्म के कर्मों का फल अनिवार्य रूप से भोगना पड़ता है। (२) पतिव्रता स्त्री की मनुष्य ही नहीं, देवता भी पूजा करते हैं। और (३) जो शासक जनमंगल-प्रेरित प्रजापालन के अपने पवित्र कर्तव्य से च्युत हो जाता है, वह विनष्ट हो जाता है। इन्हीं तीन मुद्दों के आधार पर इस काव्य की रचना हुई है। एक अबला (स्त्री) पातिव्रत्य की निष्ठारूपी अनल में अपने ज्ञात-अज्ञात दोषों को जलाकर तप्त, स्वच्छ स्वर्णमूर्ति-सी प्रकाशित होती है-यह भी इस काव्य का एक सन्देश है। इस उत्प्रेरक कथा की अन्तर्मुखी भावनाएं वस्तुतः नूपुर को माध्यम बनाकर ही ध्वनित होती हैं। सती कण्णकि अपने शुभ विवाह के अवसर पर नूपुर पहन लेती है और जब पति कोवलन् उसकी अवहेलना कर नर्तकी माधवी. के प्रेम-पाश में फंस जाता है, तब वह नूपुरों को अपने पैरों से निकाल देती है। माधवी से रूठकर जब कोवलन् वापस लौट आया, तो व्यवसाय चलाने के लिए एक नूपुर सन्दूकची से निकालकर कण्णकि पति को सौंप देती है। पावन सतीत्वचिह्न की यही विलक्षण महिमा थी कि सती कण्णकि के पैर को अलंकृत करनेवाली वस्तु कदापि बेची नहीं जा सकती और उसे पण्य वस्तु बनाने का परिणाम भयंकर होगा। अंततः यही हुआ। इसका फल न केवल कोवलन् को, बल्कि समस्त मदुरावासियों को भी भोगना पड़ा-अपने प्राणों की बलि चढ़ाकर ! उस नूपुर को अपहृत करनेवाले सुनार का सारा वर्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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