________________
काप्पियम्-१
१४७ ___ तुरन्त कण्णकि ने अपने पति के छीने गये नूपुर को भरी राजसभा में जोर से पटक दिया । आश्चर्य ! उस टूटे नूपुर में से चमकते माणिक निकलकर चारों ओर बिखर पड़े। रानी के नूपुर में तो पांड्य देश के सम्पत्ति स्रोत मोती भरे हुए थे । अब रहस्य खुल गया और पांड्य राजा को अपने निकृष्ट अन्याय पर इतना दुःख हुआ कि तत्काल ही उसकी हृदयगति रुक गयी और वहीं सिंहासन से नीचे गिरकर निष्प्राण हो गया। उसकी देवी भी पतिवियोग को ज्वाला से झुलसकर वहीं 'सती' हो गयी। शोक एवं क्रोध से संतप्त सती कण्णकि का हृदयताप इससे भी शांत नहीं हुआ। ऐसे भ्रष्टाचारी वंचक स्वर्णकार और वासना के वश में पड़कर न्यायतुला से विचलित पाण्ड्य नरेश की राजधानी को भस्मसात् कर देना ही कण्णकि को उचित प्रतीकार अँचा। उसने अपने दाहिने स्तन को मरोड़कर अलग किया और रुधिरसिक्त उस स्तनमांस को मदुरा नगरी पर फेंक दिया। रक्त पड़ते ही सहस्रों ज्वालाओं के साथ भीषण अनल ने मदुरा को घेर लिया; और पल-भर में वह नगर अग्नि शिखाओं का ग्रास बन गया। उस समय मदुरा नगरी की अधिष्ठात्री देवी कण्णकि के सामने प्रकट होकर बोली, "ये सब दुर्घटनाएँ पूर्व-जन्मकृत कर्म के फल हैं । अतः तुम दुःखी मत होओ।" और, उसी देवी के निर्देशानुसार कण्णकि शान्त होकर वैगैनदी के किनारे से पांड्यदेश छोड़कर चेरदेश (केरल ) की ओर पैदल ही चल पड़ी। पन्द्रहवें दिन चेरदेश की सीमावर्ती एक पहाड़ी पर 'वेंगें' वृक्ष के नीचे पहुंची। उस समय देवपुरुष के रूप में कोवलन् एक विमान पर आरूढ होकर नीचे उतर आया और अपनी सती. साध्वी पत्नी कण्णकि को साथ लेकर गगनपथ से चला गया। इस अद्भुत दृश्य को वहां के 'कुरवर्' नामक पहाड़ी लोगों ने देखा और तुरन्त जाकर चेरनरेश चंगुटुवन् से अपनी आँखोंदेखी घटना का वर्णन किया । चेरनरेश सती कण्णकि का सारा वृत्तान्त अपने मित्र एवं कविवर चात्तनार से सुनकर गद्गद हो गया। श्रद्धा-भक्ति से प्रेरित हो उसने निश्चय किया कि हिमालय से शिला लाकर सती देवी कण्णकि की मूर्ति बनवाई जाय, अतएव दल-बल सहित चेरराजा ने उत्तर की ओर विजययात्रा की और मार्ग में संघर्ष करने वाले उत्तर भारतीय नरेशों को परास्त किया। मुख्यतया कनक और विजय नामक दोनों प्रतिद्वन्द्वियों को 'कुयिलालुवम्' ( हिमाचल में एक स्थान )'
१. व्याख्याता ने इस स्थान के बारे में लिखा है कि यह हिमगिरि पर __ अवस्थित है और यहां एक अर्धनारीश्वर का मन्दिर था ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org