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________________ काप्पियम्-१ शिलप्पधिकारम् _ 'काप्पियम्' ( काव्य ग्रन्थ ) या 'तॉडर निलचॅय्युळ्' (एक विषय या चरित पर आधारित पद्यसमूह ) संघकाल में प्रचलित नहीं हुए। 'पॅरुम् पंच कावियम्' या 'ऐम्पॅरुम् काप्पियम्' (पंच महाकाव्य ) और 'चित पंच कावियम्' या 'ऐंचिरु काप्पियम्' (पंच लघुकाव्य ) के नाम पर बाद में ही विभाजन हुआ था। पंच महाकाव्य ये हैं : १. शिलप्पधिकारम्, २. मणि-मेखले, ३. जीवक चिन्तामणि, ४. कुण्डल केशी और, ५. वलयापति। 'शिलप्पधिकारम्' के रचयिता शीर्षस्थानीय महाकाव्य 'शिलप्पधिकारम्' के रचयिता श्री इळंगो अडिगळ थे। वे काव्य के प्रमुख पात्र चेरनरेश चेंगुटुवन् के छोटे भाई थे । इस महा. काव्य की असाधारण विशेषता यह है कि इसका चरितनायक कोवलन् एक साधारण वणिक है और चरितनायिका भी उनकी पत्नी कण्णकि, जो वणिकपुत्री थी। वणिक् पूर्व प्रथानुसार राजा, महाराजा या किसी अवतार पुरुष को चरितनायक न मानकर, एक वणिक्-युवक और उसकी पत्नी को प्रमुख पात्र बनाने की शुरुआत इसी काव्य से हुई है। अतः इससे पता चलता है कि उस काल में वणिकों की समाज में खूब प्रतिष्ठा थी। काव्य कथा कोवलन् और कण्णकि दोनों के आनन्दमय जीवन में, सुन्दर नर्तकी माधवी का प्रवेश खलबली मचा देता है । भोगलिप्सु कोवलन् माधवी के मोहपाश में पड़कर सती कण्णकि को भूल जाता है। जब सारी सम्पत्ति माधवी की भेंट चढ़ गयी तो कोवलन् को स्वयं अपनी दीन दशा पर ग्लानि होती है। अब माधवी की मीठी उपहासभरी झिड़कियां उसके खिन्न मन में गड़ने लगीं। वह प्रेयसी से रूठकर हमेशा के लिए उसे छोड़, अपनी पत्नी कण्णकि के पास चला जाता है । कण्णकि के एक बहुमूल्य नूपुर को बेचकर उससे फिर व्यव. साय करने का निश्चय करता है । दोनों अपने जन्मस्थान, पूम्पुहार नगरी को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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