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तमिल जैन साहित्य का इतिहास बनेक जैनाचार्य थे । इसे जैनसम्प्रदाय का स्मृति-ग्रंथ कहा जा सकता है । इस अन्य के बारे में एक अनुश्रुति प्रचलित है
"एक समय पांड्य देश में भारी अकाल पड़ा। उस समय वहां सहस्रों जैनाचार्य रहते थे। दुभिक्ष की भीषणता जब असह्य हो गयी, तब जैनाचार्यों ने उपहारस्वरूप एक-एक पद्य रचकर पांड्यनरेश को अपित कर, वहां से प्रस्थान कर दिया। उन पद्यों में से बहुत-से पद्य तो विनष्ट हो गये थे। शेष बचे हुए चार सौ पद्यों का संग्रह ही, बाद में 'नालडि नानूरु' या 'नालडियार' के नाम से प्रसिद्ध हुआ।" ___इस संग्रह की मधुरिमा से मुग्ध होकर प्रसिद्ध पाश्चात्य विद्वान् डॉ० पोप ने उस संग्रह के कई गीतों का अंग्रेजी अनुवाद किया था। यह ग्रन्थ तिरुक्कुरळ् की तरह विषयविभाजन के आधार पर अधिकारों (अध्यायों) में वर्गीकृत नहीं है। इसमें कई अद्भुत तत्त्वों का मार्मिक वर्णन है। ऐसे सरल, सुबोध तथा अचूक प्रभावपूर्ण सुन्दर नीतिपद्य अन्यत्र शायद ही मिलें । कई पद्यों में संस्कृत के नीतिश्लोकों का भावावतरण अवश्य हुआ है, फिर भी उनमें तमिल वाणी की सहज मधुरिमा एवं विशिष्ट अभिव्यंजना अवश्य भरी हुई हैं।
__ 'नालडियार' संग्रह में जैनधर्म के जीवनसम्बन्धी तथा जनमंगलकारी अधिकांश मूल तत्त्व हैं, जो बड़े मार्मिक शैली में लिखे हुए हैं। पदुमनार नामक जैनाचार्य ने इन चार सो पद्यों का सङ्कलन किया और उन पद्यों को अधिकारों (अध्यायों) में विभक्त किया। उन्होंने ही इस संग्रह की सुंदर व विशद व्याख्या भी तमिल में की। काल-निर्णय
_ 'नालडियार' संग्रह में 'मुत्तरैयर' नामक सामन्त राजाओं का उल्लेख मिलता है । 'मुत्तरैयर' तीनों राजाओं (पाण्ड्य, चोल और पल्लव) के सामन्तों का नाम मालूम होता है। 'तरैयर' ही सामन्त या छोटे राजा का उपाधिनाम था। पल्लव तरैयर पाण्ड्य तरैयर आदि नाम इतिहास में पाये जाते हैं। इन सामन्तों ने सातवीं शती में पल्लव महाराजाओं की सहायता कर बड़ी ख्याति प्राप्त की। ये पांड्य देश के तंजावूर को अपनी राजधानी बनाकर शासन करते थे।
"नालडियार' के सङ्कलनकर्ता आचार्य पदुमनार ने अपने समकालीन पेरुमुत्तरैयर नामक सामन्त का उल्लेख किया है। कुछ इतिहासवेत्ताओं का कहना
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