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________________ धर्मग्रन्थ १३१ ग्रन्थ का नाम रचयिता ७. ऐंतिण ऐंपदु मारन् पॉरैयनार ८. ऐंतिणे एलुपदु मूवादियर ९. तिणे मॉलि ऐपदु कण्णन् चेन्दनार् १०. निण माले नूट्रम्पदु कणि मेधावियार् ११. तिरुक्कुरल तिरुवल्लुवर १२. तिरुकडुकम् नल्लातनार् १३. आचारक् कोवै पॅरुवायिन् मुल्लियार् १४. पलमॉलि नानूरु मुन्तुरै अरैयनार् १५. चिर पंच मूलम् माक्कायन् माणाक्कनार माक्कारि আহাৰ १६. मुदु मॉलि कांचि मदुरै कूडलूर किलार् १७. एलादि कणि मेधाविया १८. कैनिल अशात ये अठारहों ग्रन्थ प्राय: 'मूदुरै' ( लोकोक्ति या कहावत-सम्बन्धी-Gnomic Verses ) गीतों के संग्रह हैं । जीवन के विविध पहलुओं को सत्य के आधार पर चित्रित करनेवाली कहावतें और लोकोक्तियां समस्त भाषाओं में सुरक्षित हैं । तोलकाप्पियर ने भी इनका उल्लेख अपने ग्रन्थ में किया है । इनको केवल कहावतें या लोकोक्तियां न मानकर, विद्वानों का साहित्यिक भाषा में प्रणीत सरल जनपदीय साहित्य मानना चाहिए। इनमें तत्कालीन जनजीवन का प्रतिबिम्ब पड़ने पर भी प्रणेता तथा संकलनकर्ता विद्वानों के बहुभाषाज्ञान का प्रभाव भी स्पष्ट दिखाई देता है। उनका मुख्य ध्येय यही रहा कि ये सूक्तियां किसी एक प्रदेशवासियों की न रहकर, सर्वदेशीय हों। इन ग्रन्थों के नामकरण में रचयिताओं ने अपनी विषयवस्तु की झलक भी दे दी है। 'इनियवै नाप्पंदु' ( मधुर हित चालीसी) और 'इन्ना नार्प' ( अहित चालीसी ) से ग्रन्थ का उद्देश्य प्रकट होता है । विभिन्न तत्त्वों के संकलनों के लिए 'नान् मणिक्कडिकै' (चार मणियों की मंजूषा ), 'चिरु पंच १. इन्होंने १०वें ग्रन्थ 'तिण माले नूट्रैम्पदु' की भी रचना की है। २. कुछ विद्वान् इसके स्थान पर 'इनिल' नामक ग्रन्थ को मानते हैं, जिसके .. रचयिता थे पॉय्कैयार। । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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