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जैनधर्म और तमिल देश
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कामशास्त्र को इस प्रकार की गंभीर एवं पवित्र रीति से शायद ही किसी आचार्य ने प्रस्तुत किया है । सम्भवतया, प्राचीन तमिल साहित्य की विशिष्ट शाखा 'अहप्पारुळ' ( जीवन का अन्तर्मुखी पक्ष ) से परिचित होने के कारण, तिरुवळ्ळुवर कामशास्त्र विषयक अपूर्व अध्याय प्रस्तुत करने में सफल हुए । इसमें उन्होंने यह परिवर्तन या कहें कि क्रान्तिकारी परिशोधन किया कि संघकाल में प्रचलित तथा आचार के रूप में स्वीकृत गणिकासंगम की परम्परा का अपने अध्याय में संकेत तक नहीं किया। योग्य युवक-युवती के स्वच्छ प्रेम के विकसित रूप तथा उनके पवित्र दाम्पत्य में निखरे शोभन परिणाम को ही तिरुवळ्ळुवर ने अपने अध्याय का आधार बनाया । उदात्त भावनाओं से पूर्ण उनके 'इन्बम्' (काम) अध्याय की यही विशेषता है, जो अन्यत्र दुर्लभ है ।
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