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तमिल जैन साहित्य का इतिहास एकदम भूल जाना ही सर्वोत्तम धर्म है। इस प्रकार, प्रत्येक धर्म के वर्णन में तिरुवल्लुवर ने अपना आदर्श प्रतिष्ठित किया है । 'पॉरुळ्' (अर्थ)
तिरुक्कुरळ के दूसरे 'पॉरुळ पाळ' (अर्थविभाग) में राजनीति तथा सामु. दायिक जीवन के बारे में कई उपादेय बातें वर्णित हैं। यद्यपि इसमें कथित विषय राजनीति से अधिक सम्बन्धित हैं, तथापि साधारण जनजीवन के लिए भी वे उपयोगी एवं आचरणीय हैं। इसीलिए राजतन्त्र के समय में बतायी गयी बातें, अब गणतन्त्र के स्वतन्त्र जनजीवन के लिए भी लागू होती हैं । तिरुवळ ळ वर ने इस अध्याय में अपना स्पष्ट निर्णय दिया है कि शासनसत्ता की स्थिरता एवं निर्दोष परिचालन के लिए विद्वानों, अच्छे विचारकों तथा योग्य राजनीतिज्ञों से भरी मंत्रणासभा (संसद्), और विद्या तथा तदनुरूप अनुष्ठान वाले मनीषी-ये तीनों साधन अनिवार्य हैं। तिरुवळ्ळूवर राजनैतिक दांवपेंचों तथा कुचक्रों से भलीभांति परिचित थे, किन्तु सफलता या विजय को एकमात्र उद्देश्य मानकर साधन या आचरण की भ्रष्टता का अंगीकार उन्होने कभी नहीं किया। वे साध्य की तरह साधन को भी पवित्र एवं आदर्शोन्मुख रखने के पक्षपाती थे। 'विनत्तूयमै' (कार्य की पवित्रता) नामक अलग अधिकारम् (प्रकरण) उन्होंने तिरुक्कुरळ में लिखा । राजनीति और सामूदायिक जीवन के लिए उदारचित्त और सदाचरण को ही उन्होंने आधार माना। इसीलिए, इस अध्याय के अंत में, जन्म की गरिमा, अच्छी संस्कृति, स्नेहगुण, अधर्मभीरुता, समदर्शिता, सत्यभाषिता और आत्मसम्मान को प्राणवत् माननेवाले भद्र मनुष्यों का वर्णन किया गया है । 'इन्बम्' (काम)
तिरुक्कुरळ के तृतीय अध्याय 'इन्बम्' में आदर्श दाम्पत्य जीवन का, संघकालीन साहित्य से अनुमोदित रीति-नीति के आधार पर विशद् वर्णन किया गया है। उसका सारांश यह है-एक स्त्री का एक ही पति हो सकता है तथा पति भी एकपत्नीव्रत निबाहेगा। ऐसा स्त्री-पुरुष-युगल अपना आदर्श रखेगा तथा अनुपम कहलाएगा। शरीर से भिन्न होने पर भी दोनों पतिपत्नी आचार-विचार तथा अटूट स्नेह-सौजन्य से अभिन्न एकप्राण-से रहेंगे। वे परम्परागत सदाचार से कभी विचलित नहीं होंगे। उनका जीवन नि:स्वार्थ भावना से ओतप्रोत हो, परहित तथा परोपकार में अपनी सफलता मानेगा।
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