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जैनधर्म और तमिल देश
११९ अर्थान्तर हो गया । उसका मूल स्वरूप तोलकाप्पियम् में अब भी सुरक्षित है। इसी प्रकार 'चेय्युळ्' (पद्य) शब्द का प्रचलन प्राचीन काल में था। 'चेय्युल' का व्युत्पत्ति परक अर्थ है, जो किया जाता है, वह । इसी का समानार्थक क्रिया' शब्द प्राचीम ग्रंथ 'ललितविस्तर' में, पद्य के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। ध्वनि के बारे में कई प्राचीन निष्कर्ष तथा अनुसंधान तोलकाप्पियम् के 'इरैच्चि', 'उळ्ळुरै' नामक अध्यायों में पाये जाते हैं। ,
संस्कृत के प्राचीन ग्रंथों के ठीक-ठीक कालनिर्णय के अभाव में तोलकाप्पियम् में उल्लिखित तथ्यों के बारे में जिनके मूल स्रोत संस्कृत ग्रंथ हैं, निष्कर्ष निकालना कठिन है। कुछ प्रामाणिक शोधों से, लोग इस निर्णय पर पहुँचे हैं कि ई० दूसरी शती के काव्यग्रंथों से, जो अन्तिम संघकालीन माने जाते हैं, तोलकाप्पियम् पूर्ववर्ती ग्रंथ है। अन्तिम संघ के पूर्व भयंकर समुद्रप्लावन हुआ। इसका काल सिंहल के 'महावंश' में ई० पू० १४५ कहा गया है। उस समय पाण्डिय देश की कुमरि नदी समुद्रप्लावन से नष्ट हो गयी। पांडियनरेश निलन्तरु तिरुविर् पांडियन के शासन काल में कुमरि नदी की चर्चा मिलती है । उस राजा ने ही तोलकाप्पियम् का प्रकाशन कराया । अर्थात् समुद्रप्लावन के पूर्व ही तोलकाप्पियम् की रचना हो गयी थी, जिससे यह निष्कर्ष निकलता है कि अंतिम संघ काल के पहले ही इस नथ का प्रचार हो गया था।
संघकालीन ग्रन्थ तोलकाप्पियम् प्राचीनतम लक्षण ग्रंथ है । अतः उससे पूर्व भी पर्याप्त लक्षण ग्रंथ होंगे। वे ही संघकालीन ग्रन्थ हैं । 'एटुत्तॉकै' (आठ लघु ग्रन्थों का संग्रह ), 'पत्त पाटु' ( दस गाथाएं) आदि संग्रह संघकालीन ग्रन्थ हैं। ये फुटकर रचनाओं तथा कविताओं के संग्रह हैं । संघकालीन विद्वानों ने विद्वत्संघ स्थापित कर तमिल की श्रीवृद्धि की। भाषा तथा साहित्य पर कई पहलुओं से शोध-कार्य उन्होंने किया । ___साहित्यिक उल्लेखों तथा अनुश्रुतियों से पता चलता है कि तमिल विद्वानों के तीन संघ थे । पहला संघ दक्षिण मदुरै में था, जो हिन्दमहासार के गर्भ में विलीन हो चुका । दूसरा संघ कपाटपुरम् में था। इस नगर का वर्णन वाल्मीकि रामायण के सुंदर कांड में मिलता है । यह नगर भी समुद्रप्लावन से विनष्ट हो गया। तीसरा संघ वर्तमान मदुरै नगर में था। प्रथम और द्वितीय संघों का समय
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