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________________ जैनधर्म और तमिल देश ११७ उसमें बताये गये कई नियम संघकालीन साहित्य में ही लुप्त हो गये । उदाहरणतः, उपमा निर्देशक प्रत्यय, रीतिप्रकरण की विशिष्ट विधियाँ, 'च' - कार के वाक्यारम्भ में न आने की विधि, 'चेल्' (जाओ), 'वा' (आओ) के विशिष्ट प्रयोग - यह सब अर्वाचीन संघकाल में, जो तीसरे संघ के नाम से प्रसिद्ध था ( ई० पू० २ शती से ई० ४ शती तक ), व्यवहारलुप्त हो गये । इसलिए उससे भी पूर्ववर्ती साहित्य के आधार पर ही तोलकाप्पियर ने विधि-नियमों का निर्द्धारण किया होगा । अतः उनको ई० पूर्व दूसरी शती के पूर्व का मानना उचित होगा । तोलकाप्पियर ग्रंथ को 'ऐन्दिरम् निरैन्द तोलकाप्पियम्' (ऐन्द्र व्याकरण के प्रभाव से पूर्ण तोलकाप्पियम् ग्रन्थ) कहा गया है । इससे प्रतीत होता है कि ऐन्द्र व्याकरण के समय में तोलकापियर रहे होंगे । पाणिनि के बाद ऐन्द्र व्याकरण का प्रचलन नहीं रहा । - इधर कुछ वैदिक विद्वान् पाणिनि का मार्गदर्शक ग्रन्थ ऐन्द्र व्याकरण ही मानते हैं । इसका उल्लेख प्रसिद्ध शैवसन्त अप्पर ने इस प्रकार किया है'इंदिरत इनिदाक ईन्दार्' (इन्द्र व्याकरण को 'प्रस्तुत किया) । ' सुन्दर ढंग से तोलकाप्पियर ने जैन विद्वानों का मत है कि 'ऐन्द्र' शब्द जैनाचार्य देवनंदी के, जिनका अपरनाम पूज्यपाद था, 'जैनेन्द्र व्याकरण' का परिचायक है और तोलकाप्पियर ने इसी जैनेन्द्र व्याकरण के आधार पर अपने ग्रंथ की रचना की है । ऐसा मानने पर तोलकाप्पियर का काल-निर्णय करने में बाधा खड़ी हो जाती है । अतः 'ऐन्द्र' शब्द से पाणिनि के पूर्ववर्ती ऐन्द्र व्याकरण मानना ही समुचित प्रतीत होता है । यह भी सम्भव है कि पहले विद्वानों द्वारा उपेक्षित ऐन्द्र न्याव्याकरण को जैनाचार्यों द्वारा समादर मिलने तथा आचार्य पूज्यपाद के नये व्याकरण के कारण विद्वज्जनानुमोदन प्राप्त हुआ हो । चार प्रकार के शब्द कुछ विद्वानों का मत है कि यास्क ने शब्द के जो चार विभाग नाम, आख्यात, उपसर्ग और निपात के रूप में किये उन्हीं को तोलकाप्पियर ने 'पेयर्', 'विन', 'इडै चोल्' और 'उरि चोल्' के नाम से अंगीकार किया । इड चोल का अर्थ सम्बन्ध सूचक ( conjunction ) और उरि चोल का अर्थ विशेषण ( attributive ) है । अत: इन्हें यास्क के अनुसार उपसर्ग और निपात बताना उचित नहीं होगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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