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________________ जैनधर्म और तमिल देश ११५ अतः तोलकाप्पियर को किसी विशिष्ट धर्म या सम्प्रदाय का सिद्ध करने का प्रयास व्यर्थ ही प्रतीत होता है। वे शुद्ध विद्योपासक थे और उनकी दृष्टि में केवल तमिल भाषा थी, तमिल का साहित्य तथा आचार-विचार थे । अतः वे तटस्थ भाव से जहां जो उपादेय विषय मिलता था, उसे अपनाते थे। यही कारण है कि उन्होंने अपने लक्षणग्रंथ तोलकाप्पियम् के आरम्भ में मंगलाचरण ही नहीं किया। इसीलिए सब धर्मवाले उन्हें अपने धर्म का अनु. यायी सिद्ध करना चाहते हैं । तमिल व्याकरण का विकास कहना चाहिए कि वैदिक, जैन तथा बौद्ध पण्डितों के तुलनात्मक भाषाज्ञान के प्रभाव से तमिल व्याकरण का पर्याप्त विकास हुआ है। उन सबकी अपार विद्वत्ता तथा संस्कृत आदि अन्य समृद्ध भाषाओं का मार्मिक ज्ञान-- यह सब तमिल व्याकरण के विकास के लिए बहुत सहायक सिद्ध हुए। उनकी यह विशेषता थी कि उन्होंने दूसरी भाषा के व्याकरण के नियमों को तमिल में बलात् घुसेड़ा नहीं; प्रत्युत, तमिल की अपनी विशिष्ट रीति-नीति तथा व्याकरण पद्धति का प्रामाणिकता पूर्वक पालन किया। इसे उनकी आदर्श सेवा कहा जा सकता है। तोलकाप्पियर के समय में नाटकीय संवाद जैसे फुटकर पद्य अधिक प्रमाण में प्रचलित थे। उनका संकलन कर, 'अकम्' ( आत्मगत ) तथा 'पुरम्' (बहिर्गत ) की श्रेणी में उन्हें विभाजित किया गया। यह तत्त्व-चिंतन के आधार पर होनेवाली पद्य रचना के विकास का परिचायक है। जो सबके लिए साधारण जीवनतत्त्व, संवेदन (प्रेम आदि), उत्कर्ष ( सदाचारमूलक) आदि बातों को अभिव्यक्त करता हो, उसे 'अकम्' (आत्मगत पद्य ) कहते हैं। जो किसी निर्दिष्ट चरितनायक की अनुभूति या उसके आचरण का वर्णन करता हो, उसे 'पुरम्' (बहिर्गत या व्यक्तिगत पद्य ) कहते हैं । यह विभाजन वैदिक तथा जैन धर्म के प्रसार की देन मालूम होता है। लक्ष्य ( साहित्य ) ग्रंथों के उपयुक्त लक्षणग्रन्थ प्रस्तुत करने का श्रेय उन्हीं लोगों को है। उनका अनुभव तथा महत्वपूर्ण सहयोग तमिल के विकास के लिए भी मुख्य साधन एवं संबल साबित हुआ । पद्यरचना साहित्य-सामान्य के लिए तोलकाप्पियम् में 'चेय्युळ्' ( पद्य ) का नाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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