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जैनधर्म और तमिल देश
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'मात्तिरै' ( मात्रा)
तोलकाप्पियर ने मात्रा की व्याख्या करते हुए लिखा है कि चुटकी बजाने या पलक मारने की अवधि को 'मात्रा' कहते हैं भट्टळक नामक जैन पंडित ने अपने कन्नड व्याकरणग्रन्थ में 'मात्रा' की यही व्याख्या की है और प्रमाण में एक प्राचीन संस्कृत श्लोक भी उद्धृत किया है। उस श्लोक के रचयिता का नाम ज्ञात नहीं। जैनाचार्य अपने लक्षणग्रन्थ में मूल तथा आधार के रूप में केवल अपने पूर्ववर्ती जैनाचार्यों की ही उक्तियों को उद्धत करेंगे, यह कहना युक्तिसंगत नहीं है। उनके ग्रन्थों में जैनेतर आचार्यों के ग्रन्थों के कई उद्धरण भी सहज-प्राप्य हैं । प्रत्युत, वाग्भट आदि प्राचीन आचार्यों ने 'मात्रा' पर पर्याप्त कार्य किया है। अतः तोलकाप्पियर ने मात्रा की जो व्याख्या की वह सर्वसम्मत अनुसंधान का ही परिणाम है। अतः इस आधार पर उनके धर्म का निर्णय करना युक्तिसंगत नहीं होगा। पेरॅण्कळ' ( बहुसंख्याएँ)
'तोलकाप्पियर ने अपने ग्रन्थ के 'एळुत्तधिकारम्' ( अक्षराधिकार ) में बहुसंख्यावाचक 'तामरै' (कमल), 'वळळम्' (बाढ़ ), 'आम्बल' ( कुमुद ) आदि संज्ञाओं का विवेचन किया है। संस्कृत में भी उस प्रकार-बहुसंख्याके वाचक शब्द हैं, फिर भी 'कुमुद' शब्द केवल आचार्य उमास्वातिरचित 'स्वोपजभाष्यम्' में प्रयुक्त हुआ है। उमास्वाति जैन आचार्य थे, इसलिए तोलकाप्पियर ने भी जैन होने के कारण उमास्वाति का अनुकरण कर 'कुमुद' शब्द अपनाया।'-यह कुछ विद्वानों का अभिमत है। किन्तु, ध्यान देने की बात यह है कि तोलकाप्पियर ने न तो किसी संस्कृत व्याकरण का समर्थन किया, न जैन गणितशास्त्र का ही प्रचार किया। उन्होंने केवल अपने समय में प्रचलित भाषापद्धति और उसकी व्यावहारिक रीति का ही विवेचन किया । उपयुक्त बहुसंख्यावाचक शब्द उनके समय से ही लोक-व्यवहार में प्रचलित हो चुके थे। यह माना जा सकता है कि जैनाचार्यों ने तमिल में लिखना उस समय प्रारम्भ कर दिया और उन्हीं के द्वारा वे शब्द जनसाधारण के व्यवहार में आ गये होंगे। 'पण्णत्ति' ( एक काव्य-विशेष )
तमिल काव्य-विशेष ‘पण त्ति' की चर्चा तोलकाप्पियर ने की है । कुछ विद्वानों का मत है कि तोलकाप्पियर ने प्राकृत भाषा में रचित जैन-छन्द शास्त्र के आधार पर ही उक्त पण्णत्ति का विवेचन किया। किन्तु यह कहना
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