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११.
तमिल जैन साहित्य का इतिहास ६. छह ज्ञानवाले-उन पांचों ज्ञानों के अलावा, चिंतन और अभिव्यंजना की शक्तिवाले 'पकुत्तरितु' (विवेचनज्ञान ) होने से, मनुष्य 'आररिवुयिर' (छह ज्ञानवाले ) होते हैं।
आचार्य तोलकाप्पियर् का यह विभाजन जैन सिद्धान्त के अनुसार बन पड़ा है। इसीलिए उन्हें जैन सिद्ध करनेवाला तर्क पेश किया जाता है। किंतु, जैन सिद्धांत के अनुसार, पांच ज्ञानवाले जीवों की श्रेणी में ही मनुष्य, जानवर आदि आ जाते हैं फिर भी संवेदन तथा विवेचन का ज्ञान मनुष्य की भांति जानवरों को नहीं है । तोलकाप्पियर ने अपने विभाजन में 'आररिवुयिर' नामक छठा भेद करके मानो जैन पद्धति को विशद् किया है।
तमिल में जीवों के विभाजन की अपनी विशिष्ट रीति है। वस्तुओं के दो विभाग हैं-१. उयर् तिणे ( ऊँचा कुल ) और २. अह.रिणे ( उससे भिन्न कुल )। छह प्रकार के ज्ञानवाले मनुष्य आदि 'ऊँचे कुल' में गिने जाते हैं
और छह से कम ज्ञानवाले मनुष्यों तथा अन्य जीवों को 'उससे भिन्न (निम्न) कुल' में गिना जाता है। इस आधारभूत सिद्धान्त का ही आचार्य तोलकाप्पियर ने अपने ग्रन्थ में समर्थन किया है। इस अध्याय का नाम उन्होंने 'मरपियल' (रीतिप्रकरण ) रखा है। अतः यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि तोलकाप्पियर ने तमिल की विशिष्ट रीति का उल्लेख किया, न कि अपने या किसी के सिद्धान्त का समर्थन किया। यहां सिद्धान्त-समर्थन या मत-प्रचार की कोई नौबत ही नहीं आयी; वह भी, एक प्रामाणिक व्याकरण-रीति-ग्रन्थ में साम्प्रदायिक सिद्धान्त का समावेश, जहाँ तक तोलकाप्पियर की बात है, कदापि सम्भव नहीं लगता। उनका उद्देश्य तो तमिल की रीति-नीति का प्रामाणिक परिचय देना था। उन्होंने इन्द्र, वरुण आदि देवताओं का भी उल्लेख किया । अतः यह कहना क्या उचित होगा कि तोलकाप्पियर् वैदिक मत के अनुयायी थे ? अन्ततोगत्वा, हमें इस निर्णय पर पहुँचने में कोई आपत्ति नहीं कि तोल काप्पियर ने निलिप्त तथा तटस्थ भाव से तत्कालीन रीति-नीति का प्रामाणिक परिचय दिया, और यह भी सम्भव है कि उनको जैन धर्म की जानकारी थी, तथा उनके समय में जैन धर्म तमिलनाडु में फैल चुका था।
तोलकाप्पियर के 'आररिवुयिर' (षड्ज्ञानी जीव ) का विभाजन ग्रहण कर, उनको 'वैदिक धर्मानुयायी' माननेवाले भी कम नहीं हैं। उनकी दलील है-'जैन विद्वान् जीवों को पांच ज्ञानभेदों के आधार पर पांच विभागों में
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