SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०८ तमिल जैन साहित्य का इतिहास है । एक अन्य शिलालेख से ज्ञात होता है कि विजयनगर-शासन-काल में ( ई० चौदहवीं शती) तिहप्परुत्ति कुंड्रम् में जैन पुराणग्रन्थ 'मेरुमन्यर पुराणम्' के रचयिता वामन मुनि और उनके शिष्य परवादिमल्ल दोनों विराजमान थे ।' उपर्युक्त शिलालेखों में एक ही नाम बार-बार आया है। सम्भवतया एक व्यक्ति का नाम उनमें दुहराया गया होगा और यह भी सम्भव है कि एक ही नाम के कई साधु भिन्न-भिन्न समय में हुए हों। इसके समुचित समाधान के लिए ग्रन्थकर्ता जैनचार्यों के नामों का वर्गीकरण एवं शोध अति आवश्यक है। जो हो, इतने मुनियों तथा आचार्यों के नाम और परिचय प्राप्त होने से स्पष्ट है कि जैनधर्म का तमिलनाडु में पर्याप्त प्रभाव था। - तोलकापियम् परिचय . तमिल भाषा का प्राचीनतम ग्रंथ है तोलकाप्पियम् । यह एक श्रेष्ठ व्याकरणग्रन्थ ही नहीं, प्रामाणिक लक्षणग्रन्थ भी है। व्याकरणग्रन्थों में तो अधिक. तर शब्दों की व्युत्पत्ति, निष्पत्ति, निरुक्ति आदि का बाहुल्य होता है; पर आचार्य तालकाप्पियर ने, जिनके नाम पर ही प्रस्तुत ग्रन्थ प्रसिद्ध हुआ है, न केवल शब्दों का, किन्तु अक्षरों तक का विशद् विश्लेषण किया है। और विशेषता यह है कि इन्होंने अपने ग्रन्थ में काव्य, छन्द, अलंकार, लक्षण आदि के विशद् वर्णन के साथ ही साथरस, ध्वनि, उक्तिवैचित्र्य, रीति (Convention), वाच्य, अर्थभेद आदि की विशिष्ट तमिल परम्परा का प्रामाणिक परिचय भी दिया है। तोलकापियर् का मत है कि आंतरिक संवेदन काम ( तीसरा पुरुषार्थ ) और बाह्य आचार धर्म तथा अर्थ काव्य या ग्रंथ के प्रधान ध्येय हैं। तोलकाप्पियर के व्याकरण-सूत्र पाणिनीय अष्टाध्यायी की तरह प्रत्याहार के रूप में न होकर, ऐन्द्र व्याकरण की तरह अर्थवत् शब्दान्त ( वाक्यविन्यस्त) हैं। इसी कारण, प्राचीन कविवरों ने उसकी प्रशंसा में कहा-'ऐन्दिरम् निरैन्द तोलकाप्पियन् (ऐन्द्र व्याकरणशान से पूर्ण पंडितवर तोलकाप्पियर)'' पडिमै ( तपश्चर्या ) कुछ विद्वानों का मत है कि तोलकाप्पियर् जैन थे। उनके ग्रन्थ 'तोल काप्पियम्' के 'शिरप्पु पायिरम्' ( परिचायक अभिनन्दन-पद्य ) में कविवर पणम्बारनार ने ग्रन्थकर्ता की प्रशंसा में 'पडियोन्' शब्द प्रयुक्त किया है । 'पडिम' शब्द का अर्थ जैन-परम्परा के मुनियों का पवित्र आचरण या तपस्या १.A. R. I. E. 1923/97 D. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy