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जैनधर्म और तमिल देश
८. उनके शिष्य-कनकवीर अडिगळ् . ९. पटिच्चमण भट्टारर् १०. उनके शिष्य-भवणंदी पेरियार (भवणनंदी स्वामी) ११. तिरु मलैयर् मॉनि (मुनि) भटारर् १२. उनके शिष्य-दयापालप् परियार १३. पुष्पनंदी भटारर् १४. उनके शिष्य-पॅरुनन्द भटारर १५. अरिट्टनेमी भटारर (अरिष्टनेमी भट्टारक) १६. तिरुक्कोट्टाद, विमलाचन्द्र गुरुवडिगळ १७. उनके शिष्य-शांतिसेन अडिगळ्
कर्णाटक के श्रवणबेळगोळ की तरह, तमिलनाडु के गुध्रगिरि और मदुरै के गिरि जैनधर्म के प्रधान केन्द्र थे। अन्य स्थल
तिण्डिवनम् के वेलूर में जयसेन नामक जैनाचार्य थे तॉण्डूर में वज्र इळम्पॅरुमानडिगळ् रहते थे। तिरुमलै ( उत्तर आर्काट जिला ) में आचार्य परवादिमल्ल और इनके शिष्य अरिष्टनेमी आचार्य दोनों रहते थे। इनके साथ सिंहलवासी जैनों के नाम भी उपलब्ध होते हैं ।
___ दसवीं शती के एक शिलालेख में कोयिलूर ( दक्षिण आर्काट जिला ) के कुरन्ति गुणवीर भट्टारर् का उल्लेख मिलता है। राजराज चोळन् के समय ( ई० ९८५-१०१४ ) में गुणवीर महामुनि ने पोळूर तालुका के तिरुमल पर एक 'कलिंगु' (बांध का द्वार ) की स्थापना की थी।
सुन्दर माण्डियन् के शासन काल में, कनकचन्द्र पण्डित और इनके शिष्य धर्मदेवाचार्य दोनों जीवित थे (पुटुक्कोट्टै शिलालेख संख्या ४७४) । ग्यारहवीं शती के चोळनरेश राजेन्द्रन् से समकालीन एवं तमिल के सुप्रसिद्ध छन्दग्रन्थ 'याप्पॅरुकला कारिक' और 'याप्परुकल वृत्ति' के रचयिता अमित सागर ( या अमृतसागरर् ) के विषय में शिलालेख से पर्याप्त जानकारी मिलती
१. S. I. I. Vol. V p. 121. २. A. R. I. E. 1919/12, 41. ३. M. A. R. 1934-35 p. 83. ४. S. I. I. Vol. I p. 95-98 & p. 104. 105. ५.M.A. R. 1936-37, p. 68. ६. S. I. I. Vol. I p. 95.
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