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तमिल जैन साहित्य का इतिहास ( श्रीपूर्ण ), तिट्चै चरणन् ( दीक्षाचरण १), तिरुचात्तन्, श्री पूर्णचन्द्रन्, नियत्तक् करन् पट्टक्काळि आदि जैनाचार्यों के नाम दिये हुए हैं। समणर मले
मधुरै के 'समणर मलै' (श्रमण गिरि) में ईसवी दसवीं-ग्यारहवीं सदियों के शिलालेख हैं। उनमें निम्नलिखित जैन-नाम मिलते हैं।'
१. कुरण्डि अष्ट उपवासी भट्टारकर् २. इनके शिष्य-गुणसेनदेव ३. इनके शिष्य-कनकवीर पेरियडिगळ ४. अष्ट उपवासी के दूसरे शिष्य-महानंदी पेरियार (स्वामी) ५. कुरण्डि कनकनंदी भट्टारकर् ( इन्हीं का नाम अभिनन्दन् भट्टारकर
६. गुणसेन देव के शिष्य-वर्धमान पंडितर ७. इनके शिष्य-गुणसेन पेरियडिगळ् ८. गुणसेन देव चट्टन् ९. दैवबल देवन् १०. अन्दलयान् ११. अरैयं काविति संघर्नबि १२. श्री अच्चणंदी की माता गुणवती १३. आच्चान् श्रीपालन्, और
१४. कनकनंदी। कळुगु मलै
कळगु मलै (गृध्र पर्वत) प्राचीन जैन केन्द्र था। उत्तरकालीन शिलालेखों में जैनों के निम्न नाम मिलते हैं, जैसे
१. गुणसागर भट्टारर् ( इनके शिष्य थे, पेरेंयिक्र्कुडि शात्तन् देवन् ।) २. तिरुक्कोट्टाट्र, पादमूलत्तान् ३. कन्मन् पुटपनंदी . ४. मलै कुळत्त श्रीवर्धमान पेरुमाणाक्कर् श्रीनंदी ५. तिरुक्कोट्टाट्र, उत्तनंदी गुरुवडिगळ् ६. उनके शिष्य-शांति सेना परियार ७. तिरु नरं कुन्ड्रम् बलदेव गुरुवडिगळ् १. A. R. I. E. 1908/2, 3-30, 332; 1910.61-68.
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