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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
संतिनाहचरिय :
यह गुणसेन के शिष्य और हेमचन्द्राचार्य के गुरु पूर्णतल्लगच्छीय देवचन्द्रा • चार्य कृत १६ वें तीर्थकर शान्तिनाथ का चरित है। इसका परिमाण ग्रन्थान १२००० है । इसकी रचना सं० ११६० में हुई थी। यह प्राकृत गद्य-पद्यमय है । बीच-बीच में अपभ्रंशभाषा भी प्रयुक्त हुई है । इसकी रचना खंभात में की गई थी । इसकी प्रस्तावना में निम्नलिखित आचार्यों का उल्लेख हैं : इन्द्रभूति ( कविराज चक्रवर्ती ), भद्रबाहु जिन्होंने वसुदेवचरित लिखा ( सवायलक्खं बहुकहा कलियम् ), हरिभद्र समरादित्य कथा के प्रणेता, दाक्षिण्यचिह्नसूरि कुवलयमाला के कर्ता तथा सिद्धर्षि उपमितिभवप्रपंचा के कर्ता । यह अबतक अप्रकाशित है ।
इनकी एक अन्य कृति मूलशुद्धिप्रकरणटीका ( अपरनाम स्थानकप्रकरणटीका ) है। इसके चौथे एवं छठे स्थानक में आनेवाले चन्दनाकथानक तथा ब्रह्मदत्तकथानक को देखने से ज्ञात होता है कि इनमें आनेवाली अधिकांश गाथाएं तथा कतिपय छोटे-बड़े गद्यसंदर्भ शीलांकाचार्य के चउम्पन्न महापुरिसचरिय में आनेवाले 'वसुमइसंविहाणय' और बंभयत्तचक्कवट्टिचरिय के साथ अक्षरशः मिलते हैं । इन कथाओ के अवशिष्ट भागों में से भी कितना ही भाग अल्पाधिक शाब्दिक परिवर्तन के साथ चडप्पन्न पुरि० का ही ज्ञात होता है । अनुमान है कि संतिनाहचरियं पर भी चउप्प० चरिय० का प्रभाव हो । चूंकि यह अप्रकाशित है इससे कुछ कहना कठिन है ।
शान्तिनाथ पर इस विशाल रचना के अतिरिक्त प्राकृत में एक लघु रचना ३३ गाथाओं में जिनवल्लभ सूरि रचित तथा अन्य सोमप्रभ सूरि रचित का उल्लेख मिलता है ।' संस्कृत में तो शान्तिनाथ पर अनेकों रचनाएँ लिखी गई हैं।
१७ वें तीर्थंकर कुन्थुनाथ और १८ वें अरनाथ पर प्राकृत में कोई रचनाएँ उपलब्ध नहीं हैं ।
१९ वें तीर्थंकर मल्लिनाथ पर प्राकृत में ३-४ रचनाएँ मिलती हैं । उनमें जिनेश्वरसूरि कृत का प्रमाण ५५५५ ग्रन्थाग्र है । इसकी रचना सं० १९७५ में
१. वही, पृ० ३७९; श्रेष्ठि हालाभाई के पुत्र भोगीलाल का भणहिल्लपुर स्थित फोफलीयावाडा भागलीशेरी भाण्डागार, पाटन.
२. जिनरत्नकोश, पृ० ३८०.
३. वही, पृ० ३०२.
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