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________________ पौराणिक महाकाव्य ८७ हुई थी। जिनेश्वर सूरि के प्राकृत चरित चन्दप्पहचरियं और नमिनाहचरियं भी इस काल के लगभग लिखे गये थे। द्वितीय रचना चन्द्रसूरि के शिष्य बडगच्छीय हरिभद्रसूरि की है जिसका ग्रन्थाग्र ९००० प्रमाण है। यह तीन प्रस्तावों में विभक्त है । इसकी रचना में सर्वदेवगणि ने सहायता की थी। ग्रन्थ के अन्त में दी गई प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि इन्होंने कुमारपाल के मंत्री पृथ्वीपाल के अनुरोध पर इस चरित की तथा अन्य चरित ग्रन्थों की रचना की थी उनमें केवल चन्दप्पहचरियं और अपभ्रंश में मिणाहचरिउ उपलब्ध हैं। तीसरा चरित भुवनतुंगसूरि कृत ५०० ग्रन्थान प्रमाण जैसलमेर के भण्डारों में ताडपत्र पर लिखित है' तथा चतुर्थ १०५ प्राकृतगाथाओं में अज्ञातकर्तृक है। इसकी हस्तलिखित प्रति पर सं० १३४५ पड़ा है। मुनिसुव्वयसामिचरिय: प्राकृत में २० वें तीर्थकर पर श्रीचन्द्रसूरि की एक मात्र रचना उपलब्ध होती है। इसमें लगभग १०९९४ गाथाएँ हैं। यह अप्रकाशित रचना है । ग्रन्थकार हर्षपुरीय गच्छ के हेमचन्द्रसरि के शिष्य थे। इनकी अन्य कृतियों में संग्रहणीरत्न और प्रदेशव्याख्याटिप्पन (सं० १२२२) मिलते हैं। प्रस्तुत चरित का समय निश्चित नहीं है पर एक हस्तलिखित प्रति के अनुसार सं० ११९३ है। इस ग्रन्थ की प्रशस्ति से मालूम होता है कि लेखक ने आसापल्लिपुरी (वर्तमान अहमदाबाद ) में श्रीमालकुल के श्रेष्ठ श्रावक श्रेष्ठि नागिल के सुपुत्र के घर में रहकर लिखा था। २१ वें तीर्थकर नमिनाथ सम्बंधी एक प्राकृत रचना का उल्लेख मिलता है। नेमिनाहचरिय: २२ वे तीर्थकर नेमिनाथ पर प्राकृत में तीन रचनाएँ उपलब्ध हैं। प्रथम जिनेश्वरसूरि की है जो सं० ११७५ में लिखी गई थी। दूसरी मलधारी हेमचन्द्र 1. जिनरत्नकोश, पृ० ३०२; जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ० २७९. २. वही. ३. वही. ४. वही, पृ० ३११. ५. वही, पृ० २०२. ६. भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान, पृ० १३५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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