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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास नहीं दिया।' अन्य रचनाओं में महाराज शास्त्र भण्डार नागौर में दामोदर कविकृत प्राकृत चन्द्रप्रभचरित उपलब्ध है। चन्द्रप्रभ पर नागेन्द्रगच्छ के विजयसिहसूरि के शिष्य देवेन्द्रगणि ने सं० १२६४ में ५३२५ श्लोक प्रमाण कृति को संस्कृत-प्राकृत उभयमिश्र भाषा में रचा है। अपभ्रंश में यशःकीर्ति की रचना २४०९ श्लोक-प्रमाण ११ सन्धियों में मिलती है। नववे और दशवें तीर्थकर पुष्पदन्त और शीतलनाथ पर प्राकृत में लिखे चरितों के उल्लेखमात्र मिलते हैं । नन्दिताव्यकृत गाथालक्षण के टीकाकार रत्नचन्द्र ने उसमें आये हुए दो पद्यों पर टीका करते हुए बतलाया है कि ये पद्य एक प्राकृत रचना पुष्पदन्तचरियं से लिये गये हैं। सेयंसचरिय: ग्यारहवें तीर्थकर श्रेयांसनाथ पर दो प्राकृत पौराणिक काव्य उपलब्ध हैं। प्रथम तो वृहद्गच्छीय जिनदेव के शिष्य हरिभद्र का जो सं० ११७२ में लिखा गया था। इसका ग्रन्थाग्र ६५८४ श्लोक प्रमाण है।' द्वितीय चन्द्रगच्छीय अजितसिंहसूरि के शिष्य देवभद्र ने ग्रन्थान ११००० प्रमाण रचा था। इसकी रचना का समय ज्ञात नहीं फिर भी यह वि० सं० १३३२ से पहले बनी है क्योंकि मानतुंगसूरि ने अपने संस्कृत श्रेयांसचरित ( सं० १३३२) का आधार इस कृति को ही बतलाया है। इस रचना का उल्लेख प्रवचनसारोद्धारटीका में उनके शिष्य सिद्धसेन ने किया है। देवभद्र की अन्य रचनाओं में तत्त्वबिन्दु और प्रमाणप्रकाश भी है। वसुपुज्जचरिय: बारहवें तीर्थकर वासुपूज्य पर चन्द्रप्रभ की ८००० ग्रंथाग्र प्रमाण रचना उपलब्ध है। इसका प्रारम्भ 'सुहसिद्धिबहुवसीकरण' से होता है। चन्द्रप्रभ ने १. जिनरत्नकोश, पृ० ११९. २. आत्मबल्लभ सिरीज सं० ९, अम्बाला; जिनरत्नकोश, पृ० ११९. ३. जिनरत्नकोश, पृ० २५३; भांडारकर ओरिएण्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट पूना की पत्रिका, भाग १४, पृ० ३. ४. जिनरत्नकोश, पृ० ३९९. ५. वही, पृ० ४००. ६. वही, पृ० ३४८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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