SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पौराणिक महाकाव्य ૮૩ चन्द्रयान का दोहद उत्पन्न हुआ था इस कारण इनका नाम चन्द्रप्रभ रखा गया (गाथा १२)। जिनेश्वरसूरि नाम के कई आचार्य हो गये हैं। प्रथम तो वर्धमानसूरि के शिष्य और खरतरगच्छ के संस्थापक (११ वी शती उत्तराध) थे और उनके ग्रन्थों के नाम सुज्ञात हैं। लगता है चन्दप्पहचरियं के रचयिता दूसरे जिनेश्वरसूरि हैं। एक जिनेश्वरसूरि ने सं० ११७५ में प्राकृत मल्लिनाहचरियं' (ग्रन्थान ५५५५) तथा नेमिनाहचरियं की रचना की थी। सम्भवतः ये ही उक्त चन्द० चरियं के रचयिता हो । __ तृतीय चन्दप्पहचरियं' के रचयिता उपकेशगच्छीय यशोदेव अपरनाम धनदेव हैं जो देवगुप्तसूरि के शिष्य थे। इन्होंने ग्रन्थान ६४०० प्रमाण काव्य की रचना सं० ११७८ में की थी। इनके अन्य ग्रन्थ हैं नवपदप्रक० बृ० की वृहद्वृत्ति और नवतत्वप्र० की वृत्ति । चतुर्थ चन्दप्पहचरियं के रचयिता बड़गच्छीय हरिभद्रसूरि हैं। इनकी उक्त रचना की एक प्रति पाटन के भण्डार में विद्यमान है जिसका ग्रन्थान ८०३२ श्लोक प्रमाण है। ग्रन्थकार के दादागुरु का नाम जिनचन्द्र तथा गुरु का नाम श्रीचन्द्रसूरि था । कहा जाता है कि सूरि ने सिद्धराज और कुमारपाल के महामात्य पृथ्वीपाल के अनुरोध पर चौबीस तीर्थकरों का जीवनचरित लिखा था पर उनमें प्राकृत में लिखे चन्द० चरियं और मल्लिनाहचरियं तथा अपभ्रंश में णेमिणाहचरिउ ही उपलब्ध है। सूरि प्राकृत, अपभ्रंश और संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान् ये । ग्रन्थकार का समय १२ वीं का उत्तरार्ध और १३वीं का पूर्वार्ध रहा है।३।। पंचम चन्दप्पहचरि० के रचयिता खरतरगच्छीय जिनवधनसूरि हैं। इनके आचार्य पद पर स्थापित होने का समय सं० १४६१ है। ये पिप्पलक नाम की खरतर शाखा के संस्थापक थे। इस चन्द० चरियं पर खरतरगच्छीय जिनभद्रसूरि के प्रशिष्य और सिद्धान्तरुचि के शिष्य साधुसोमगणि ने ग्रन्थान १३१५ प्रमाण टीका लिखी है। टीका में सूचना दी है कि जिनवर्धनसूरि ने इस चरित के अतिरिक्त चार और चरितों की भी रचना की है पर उन चरितों का नाम १. जिनरत्नकोश, पृ० ३०२. २. वही, पृ० ११९. ३. अनेकान्त, वर्ष १७, कि० ५, पृ० २३२. ४. पट्टावली-पराग, पृ० ३६३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy