SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पौराणिक महाकाव्य चाहिए । इनकी अन्य कृतियों में शतार्थकाव्य, शृंगारवैराग्यतरंगिणी, सूक्तिमुक्तावली और कुमारपालप्रतिबोध है । पउमपभचरिय: इसमें ६ठे तीर्थकर पद्मप्रभ का चरित वर्णित है। यह एक अप्रकाशित रचना है। रचयिता और रचनाकाल-इसके रचयिता देवसूरि हैं। इनकी दूसरी कृति सुपार्श्वचरित (प्राकृत ) का भी उल्लेख मिलता है। इनका थोड़ा-सा परिचय प्राप्त है। ये जालिहरगच्छ के सर्वानन्द के प्रशिष्य तथा धर्मघोषसूरि के शिष्य एवं पट्टधर थे। ग्रन्थकार ने बतलाया है कि प्राचीन कोटिक गण की विद्याधर शाखा से जालिहर और कासद्रहगच्छ एक साथ निकले थे। अन्य सूचनाएँ जो उन्होंने दी हैं, उनमें ये हैं कि उन्होंने देवेन्द्रगणि से तर्कशास्त्र पढ़ा था और हरिभद्रसूरि से आगम । उनके दादागुरु सर्वानन्द पाश्वनाथचरित के रचयिता थे। एक सर्वानन्दसूरि के पार्श्वनाथचरित का संस्कृत चरितों में परिचय दिया गया है पर वे अपने को सुधर्मागच्छीय बतलाते हैं और उनके पार्श्वनाथचरित का रचनाकाल सं० १२९१ है जबकि प्रस्तुत प्राकृत कृति का समय सं० १२५४ बतलाया गया है। सुपासनाहचरिय: ___ यह एक सुविस्तृत और उच्चकोटि की रचना है। इसमें लगभग आठ हजार गाथाएँ हैं । समस्त ग्रन्थ तीन प्रस्तावों में विभक्त है । नाम से स्पष्ट है कि इसमें सातवें तीर्थकर सुपाश्वनाथ का जीवनचरित वर्णित है। प्रथम प्रस्ताव में सुपाश्वनाथ के पूर्वभवों का वर्णन किया गया है और शेष में उनके वर्तमान जन्म का। प्रथम प्रस्ताव में सुपार्श्वनाथ के मनुष्य और देवभवों का विस्तारपूर्वक वर्णन करते हुए बतलाया गया है कि किस प्रकार उन्होंने अनेक भवों में सम्यक्त्व और संयम के प्रभाव से अपने व्यक्तित्व का विकासकर तीर्थकर प्रकृति का बंध कर सातवें तीर्थकर पद को पाया था। दूसरे प्रस्ताव में उनके जन्म, विवाह और निष्क्रमण का वर्णन किया गया है जो अन्य तीर्थंकरों की भाँति ही है। यहाँ मेरुपर्वत पर देवों द्वारा जन्माभिषेक का सरस वर्णन प्रस्तुत है। तीसरे प्रस्ताव में केवल ज्ञान के वर्णन-प्रसंग में अनेक आसनों तथा विविध तपों का वर्णन किया १. वही, पृ० २३४. २. वही, पृ० ४४५. ६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy