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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास आदिनाहचरिय:
ऋषभदेव के चरित का विस्तार से वर्णन करनेवाला यह प्रथम ग्रन्थ है। इसमें पाँच परिच्छेद हैं। ग्रन्थान ११००० श्लोकप्रमाण है। इस ग्रन्थ का दूसरा नाम ऋषभदेवचरित भी है।' इसकी रचना पर 'चउप्पन्नमहापुरिसचरियं' का प्रभाव है। उक्त ग्रन्थ की एक गाथा इसमें गाथा सं० ४५ रूप में ज्यों की त्यों उद्धृत की गयी है। अपभ्रंश की गाथायें भी इस रचना में पाई जाती हैं। यह अबतक अप्रकाशित है।
रचयिता और रचनाकाल-इसके रचयिता नवांगी टीकाकार अभयदेवसूरि के शिष्य वर्धमानाचार्य हैं। इनकी दूसरी रचनाएँ १५००० गाथाप्रमाण मनोरमाचरियं (सं० ११४०) तथा धर्मरत्नकरंडवृत्ति (सं० ११७२) भी हैं। आदिनाहचरियं का रचनाकाल सं० ११६० दिया गया है।
प्रथम तीर्थकर पर रिसभदेवचरिय नाम से ३२३ गाथाओं की एक रचना और मिलती है जिसका दूसरा नाम धर्मोपदेशशतक भी है। इसके रचयिता भुवनतुंगसूरि हैं।
दूसरे और तीसरे तीर्थकर पर प्राकृत में कोई रचनाएँ उपलब्ध नहीं हैं। चौथे अभिनन्दननाथ पर केवल एक रचना का उल्लेख मिलता है । सुमईनाहचरिय: ___ पाँचवें तीर्थकर सुमतिनाथ के चरित का वर्णन करनेवाला प्राकृत तथा संस्कृत में यह पहला ग्रन्थ है। इसका प्रमाण ९६२१ श्लोक है । इसमें अनेक पौराणिक कथायें दी गयी हैं। यह पाटन के अन्यभण्डारों की सूची में दृष्टिगोचर होता है। __ रचयिता एवं रचनाकाल-इसके लेखक विजयसिंहसूरि के शिष्य सोमप्रभाचार्य हैं जो बृहद्गन्छ के थे। इनका प्रसिद्ध ग्रन्थ 'कुमारपालप्रतिबोध' प्रकाशित हो चुका है। इनका विशेष परिचय उक्त प्रसंग में दे रहे हैं। यह ग्रन्थ उन्होंने कुमारपाल नृपति के राज्यकाल में लिखा था। संभवतः यह आचार्य की प्रथम कृति है इसलिए इसे कुमारपाल के राज्यारोहण सं० ११९९ में लिखी होना
१. जिनरत्नकोश, पृ० २८ और ५७. २. वही, पृ० ५७. ३. वही, पृ० १४. ४. वही, पृ. ४४६.
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