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पौराणिक महाकाव्य
प्रश्नसुन्दरी, वीसायंत्रविधि, मातृकाप्रसाद, ब्रह्मबोध, अर्हद्गीता प्रभृति संस्कृत ग्रन्थ तथा अनेक गुजराती ग्रन्थों की रचना भी इन्होंने की है । "
लघुत्रिषष्ठि -- सोमप्रभकृत इस ग्रन्थ का उल्लेख मेघविजयकृत ल० त्रि० श० च० की गुजराती प्रस्तावना में पं० मफतलाल ने किया है ।
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित और महापुराण पर आधारित कुछ अन्य रचनाएँ - १. लघुमहापुराण या लघुत्रिषष्टिलक्षण महापुराण - चन्द्रमुनिकृत' । २. त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्र - विमलसूरि ।
३.
- वज्रसेन ।
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४. त्रिषष्टिशलाका पंचाशिका ( ५० पद्यों में ) - कल्याणविजय के शिष्य । ५. त्रिषष्टिशलाका पुरुष विचार ( ६३ गाथाओं में ) - अज्ञात' । तिरसठ शलाका पुरुषों के स्वतंत्र पौराणिक महाकाव्य :
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रामकथा, महाभारतकथा तथा समुदित तिरसठ शलाका पुरुषों के पौराणिक महाकाव्यों ( महापुराणों ) और उनके संक्षिप्त रूपों के पश्चात् स्वतन्त्र रूप से तीर्थकरों, चक्रवर्तियों, बलदेवों, वासुदेवों आदि के जीवनचरित भी खूब लिखे गये । १० वीं शती से १८ वीं शती तक ये रचनाएँ निर्बाधगति से लिखी जाती रहीं । १२ वीं और १३ वीं शताब्दी में ये रचनाएँ प्रचुरमात्रा में लिखी गर्यो पर आगे की शताब्दियों में भी उनका क्रम चलता रहा । तीर्थकरों में सबसे अधिक महाकाव्य शान्तिनाथ पर उपलब्ध हैं । वे चक्रवर्ती पदधारी भी थे । द्वितीय श्रेणी में २२ वे नेमि और २३ वें पार्श्वनाथ पर कई काव्य लिखे गये थे । तृतीय क्रम में आदि जिन वृषभ, अष्टम चन्द्रप्रभ और अन्तिम महावीर पर भी चरितकाव्य लिखे गए। वैसे भी अन्य तीर्थकरों और अन्य महापुरुषों पर चरित्र ग्रन्थ लिखे जाने के छिटफुट उल्लेख मिलते हैं ।
पहले प्राकृत - विशेषकर महाराष्ट्री प्राकृत में रचित इन ग्रन्थों का परिचय प्रस्तुत किया जायगा और पीछे संस्कृत में रचित का ।
१. दिग्विजय महाकाव्य और देवानन्दमहाकाव्य ( सि० जै० प्र० ) की
प्रस्तावना ।
२. जि० २० को०, पृ० १६३, ३०५.
३. वही, पृ० १६५.
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